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Synopsis

आईयूआई (इंट्रा यूटेराइन इन्सीमिनेशन) फेल होने के कुछ कारण गलत सेंटर का चयन, अंडों की गुणवत्ता कम होना, महिला की उम्र अधिक होना, सही समय पर शुक्राणु इंजेक्ट नहीं होना, आदि है|

बार-बार असफल होने पर क्या करें ?

संतान ना केवल घर में खुशियां लाती है बल्कि जिंदगी को गुलजार बनाती हैं… इनकी मुस्कुराहट मंे माता-पिता का सुकून बसता है। मम्मी-पापा शब्द सुनने के लिए कपल बेकरार रहते हैं लेकिन कई दंपत्तियों को ये खुशी नसीब नहीं हो पाती…इसकी वजह है निःसंतानता। भारत में बेऔलाद रहने का दंश करीब 28 मीलियन दम्पती झेल रहे हैं, जिनका उपचार विज्ञान की नवीन तकनीकियों से किया जा सकता है। गर्भधारण नहीं होने, प्राथमिक उपचार में सफलता नहीं मिलने, महिला की फर्टिलिटी की रिपोर्ट सामान्य रहने और पुरूष के शुक्राणु सामान्य से थोड़े कम होने पर आईयूआई तकनीक अपनाने की सलाह दी जाती है लेकिन सवाल यह उठता है सफलता नहीं मिलने पर कितनी बार आईयूआई करवाया जा सकता है ?

हर निःसंतान दम्पती के लिए पहले आईयूआई तकनीक को अपनाया जाए यह आवश्यक नहीं है क्योंकि आईयूआई निःसंतानता की हर समस्या में कारगर नहीं है इसलिए दम्पती की जांचों के बाद यह तय किया जाता है उन्हें यह उपचार दिया जा सकता है या नहीं। कुदरती गर्भधारण में सफल नहीं होने पर दम्पती आईयूआई उपचार शुरू करवाते समय काफी उम्मीद रखते हैं लेकिन आईयूआई में गर्भधारण की गांरटी नहीं होती है।

क्या होता है आईयूआई (इंट्रा यूटेराइन इन्सीमिनेशन)- कुदरती गर्भधारण नहीं होने पर कृत्रिम गर्भधारण की सबसे पुरानी आईयूआई तकनीक उपचार श्रृंखला की पंक्ति में सबसे आगे दिखाई देती है। यह तकनीक सामान्य गर्भधारण के समान ही है इस कारण दम्पती की इच्छा होती है पहला प्रयास आईयूआई के साथ किया जाए । महिला की सारी जांचे सामान्य होने और पति के शुक्राणु 15 मीलियन प्रति एमएल या इससे थोड़े कम होने पर चिकित्सक यह प्रक्रिया शुरू करते हैं। प्रक्रिया के तहत महिला को कुछ हार्मोनल ट्रीटमेंट दिया जाता है जिससे सामान्य से अधिक स्वस्थ अण्डों का निर्माण हो सके और अल्ट्रासाउण्ड से उन पर नजर रखी जाती है । ओव्युलेशन (अण्डोत्सर्ग) के समय पति के सिमन सेम्पल से श्रेष्ठ शुक्राणुओं का चयन कर पतली नली के माध्यम से महिला के गर्भाशय मंे इंजेक्ट किया जाता है, इसके बाद शुक्राणुओं द्वारा ट्यूब में मौजूद अंडाणु को निषेचित करने की संभावना होती है। आईयूआई की सफलता दर काफी कम है इसमें संभोग की बजाय कृत्रिम रूप से शुक्राणुओं को गर्भाशय में छोड़ा जाता है इससे जरूरी नहीं की निषेचन हो ही जाए।

सफलता दर – आईयूआई की सफलता अधिकतम 5 से 20 प्रतिशत तक रहती है इसमें महिला की उम्र व अन्य जांचे भी महत्वपूर्ण पहलु है। उम्र बढ़ने के साथ सफलता दर कम होती जाती है। आईयूआई के पहले चक्र में सक्सेज की संभावना कम ही होती है।

कितनी बार करवाएं आईयूआई – चूंकि यह कम खर्चीली व दर्दरहित प्रक्रिया है इसलिए दम्पती को पहली बार में सफलता नहीं मिलने पर दूसरी बार यही उपचार अपनाने के लिए कहा जाता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जब तक सफलता नहीं मिले तब तक आईयूआई करवाना चाहिए। अधिकतम दो से तीन बार आईयूआई चक्र में विफल होने पर इससे अधिक सफल तकनीक की ओर कदम बढ़ाना चाहिए। बार-बार उपचार के लिए आना और उसमें असफल होना महिला के लिए आसान नहीं होता है इससे मानसिक तनाव व इलाज से परहेज की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

असफलता के कारण – गलत सेंटर का चयन, अंडों की गुणवत्ता कम होना, महिला की उम्र अधिक होना, शुक्राणुओं की क्वालिटी में कमी, सही समय पर शुक्राणु इंजेक्ट नहीं होना, ओव्युलेशन में समस्या आदि।

आईयूआई के बाद क्या – आईयूआई में असफलता मिलने पर दम्पतियों को आईवीएफ तकनीक से लाभ हो सकता है। इसकी सफलता दर भी अच्छी है। आईवीएफ में फर्टिलाइजेशन की स्वाभाविक प्रक्रिया को लैब में किया जाता है इस कारण सफलता की संभावना अधिक रहती है । फर्टिलाइजेशन के बाद भ्रूण को महिला के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है इसके बाद जन्म तक भ्रूण का विकास महिला के शरीर में ही होता है।
कृत्रिम गर्भाधान के रूप में आईयूआई पुरानी तकनीक है लेकिन इसकी अपनी सीमाएं है जैसे कम सफलता दर और अधिक उम्र की महिला में कम सफल, इस कारण कई दम्पती बार-बार आईयूआई नहीं करवा कर आईवीएफ तकनीक को प्राथमिकता देते हैं।


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