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Synopsis

पहली संतान के बाद pregnancy में दिक्कत सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी के लक्षण, महिला में निःसंतानता, पुरूषों में निःसंतानता, आईवीएफ प्रक्रिया, इक्सी, संतान सुख, आईवीएफ की सफलता दर, निःसंतान दम्पति, निल शुक्राणु, एण्डोमेट्रीयोसिस, फाईब्रॉइड्स और एसटीडी

एक बच्चे के जन्म के बाद या पहले कभी गर्भधारण होने के बाद अगर दम्पत्ति दूसरी बार गर्भधारण करने में विफल रहे, तो इसे सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी कहा जाएगा। परेशानी यहां यह है कि एक बच्चे के जन्म के बाद किसी कारणवश दूसरा बच्चा नहीं हो तो दम्पति कई शारीरिक एवं मानसिक तनाव के दौर से गुजरते हैं, ऐसा इसलिए भी क्योंकि दम्पति इस तथ्य से अनभिज्ञ रहते हैं कि सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी कितनी आम है? तकलीफ तब ज्यादा होती है जब उनके दोस्त अपना परिवार पूरा कर चुके होते हैं। सत्य यह है कि महिलाओं में सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी आम है। यह पहली बार गर्भधारण करने में असमर्थ होने से भी ज्यादा कॉमन है।

इन्दिरा आई वी एफ गोरखपुर की नि: संतानता एवं आई वी एफ स्पेशलिस्ट डॉ. नेहा सिंह बताती है किहर सात जोड़ों में से एक जोड़ें को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। अधिक उम्र की महिलाओं को उम्र और प्रजनन संबंधी मुद्दों के कारण इस समस्या का अधिक सामना करना पड़ता है।

पहला बच्चा होने के बाद 18 माह बाद करें गर्भधारण

-पहला बच्चा होने के बाद गर्भधारण में शीघ्रता नहीं बरतें। देखें कि महिला अपने बच्चे को स्तनपान करवा रही है या नहीं। ओव्यूलेशन स्तनपान को व दूध उत्पादन के लिए आवश्यक हार्मोन को कम कर सकता है। अगर कोई महिला अपने बच्चे को स्तनपान नहीं कर रही है, तो ओव्यूलेशन शुरू होने में कम से कम छह सप्ताह लग सकते हैं। हालांकि, माताओं को आदर्श रूप से गर्भावस्था के बीच 18 महीने तक अथवा एक वर्ष का अंतराल बनाए रखना चाहिए। समय से पहले गर्भवती होने के परिणामस्वरूप प्री मैच्योर प्रसव और बच्चा कम वजनी हो सकता है।

सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी के कारण

-सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी के कई कारण हो सकते हैं, संक्रमण या शल्य चिकित्सा प्रक्रिया गर्भधारण की क्षमता को प्रभावित कर सकती है।

कुछ अन्य मुद्दे जो आपकी प्रजनन क्षमता में प्रभावित कर सकते हैं:

-एंडोमेट्रोसिस के कारण क्षतिग्रस्त गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब

-फाइब्रॉइड के कारण अवरोध

-पीसीओएस-पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के कारण ओव्यूलेशन डिसऑर्डर होता है |

-पूर्व में एक्टोपिक गर्भावस्था के कारण टूटी हुई फैलोपियन ट्यूब

-पीआईडी-पेल्विक इन्फ्लैमेट्री डिसऑर्डर जो यौन संक्रमित संक्रमण के का​_रण होता है

-पिछले डिलीवरी के दौरान सीजेरियन सेक्शन जिसके परिणामस्वरूप गर्भाशय में सूजन या निशान हो सकते हैं

-खराब शुक्राणु की गुणवत्ता

-कम वजन या अधिक वजन होना

सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी के लिए टेस्ट

इन्दिरा आई वी एफ दिल्ली की नि: संतानता एवं आई वी एफ स्पेशलिस्ट डॉ. नीतिशा गुप्ता का कहना है कि महिला इनफर्टिलिटी के लिए टेस्ट यह निर्धारित करने में सहायक होते हैं कि क्या अंडाशय से अंडा परिपक्व होकर फुटकर फलोपियन ट्यूब में जाकर शुक्राणु के साथ फर्टिलाइज कर सकता है या नहीं। ये परीक्षण यह भी जांचते हैं कि अंडाशय स्वस्थ अंडे जारी कर रहे हैं या नहीं। सामान्य स्त्री रोग संबंधी परीक्षणों के अलावा, आपको अस्पष्ट बांझपन (सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी) के लिए अन्य परीक्षणों से भी गुजरना होगा। इसमें मुख्य है।

हिस्टेरोसेलपिंजोग्राफी

– यह परीक्षण फैलोपियन ट्यूबों और गर्भाशय की स्थिति को समझने के लिए किया जाता है। यह किसी अन्य अवरोध की भी जांच करता है। यह परीक्षण गर्भाशय में एक्स-रे कांट्रास्ट इंजेक्शन द्वारा किया जाता है, और एक्स-रे यह जानने के लिए लिया जाता है कि केविटिज ठीक से भरी हुई हैं या नहीं।

ओव्यूलेशन परीक्षण

– यह एक रक्त की जांच है जो आपके हार्मोन के स्तर को जानने के लिए की जाती है कि सही ढंग से ओव्यूलेशन हो रहा है या नहीं |

हार्मोन परीक्षण

-ये परीक्षण पिट्यूटरी हार्मोन और अंडाशय वाले हार्मोन के स्तर की जांच करते हैं जो प्रजनन प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं।

ओवेरियन रिजर्व परीक्षण

-यह परीक्षण अंडाशय में अंडों की मात्रा और गुणवत्ता की जांच के लिए किया जाता है।

इमेजिंग टेस्ट

– इन परीक्षणों में एक पेल्विक अल्ट्रासाउंड शामिल होता है जो फैलोपियन ट्यूब या गर्भाशय रोगों और संक्रमण का विश्लेषण करता है।

अनुवांशिक परीक्षण

– यह परीक्षण यह जानने के लिए किया जाता है कि क्या कोई आनुवंशिक दोष है जो बांझपन के लिए जिम्मेदार है।

लैप्रोस्कोपी

-यह एक छोटी सर्जरी है जो फैलोपियन ट्यूबों, अंडाशय या गर्भाशय, एंडोमेट्रियोसिस और निशान वाले अवरोध से संबंधित समस्याओं में किसी भी अनियमितताओं को जांचने में मदद करती है। इसमें नाभि के नीचे एक छोटा चीरा बना कर एक पतली देखने वाली डिवाइस डाली जाती है।

हिस्टोरोस्कोपी

– हिस्टेरोस्कोपी जांच में गर्भाशय तक पहुंचने के लिए योनी मार्ग के माध्यम से एक छोटा हल्का डिवाइस डाला जाता है। यह किसी भी असामान्यताओं को देखने में मददगार है और गर्भाशय रोगों का पता लगा सकता है।

सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी के इलाज

सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी से संबंधित समस्याओं का समाधान करने के लिए पारंपरिक तरीके निम्नलिखित हैं।

1-इंट्रायूट्राइन इंसेमिनेशन (आईयूआई)

-इस प्रक्रिया में स्वस्थ शुक्राणुओ का चयन कर इंजेक्शन के माध्यम से सीधे गर्भाशय में इंजेक्ट किये जाते है। यह उस समय किया जाता है जब अंडाशय निषेचन के लिए अंडे जारी करता है। आईयूआई का समय आमतौर पर नियमित अंडाशय साइकल से मेल खाता हुआ हो और प्रजनन दवाओं के अनुरूप हो।

2-प्रजनन दवाएं

-ओव्यूलेशन विकारों के कारण नि:संतानता को झेल रही महिलाओं का इलाज प्रजनन दवाओं से किया जाता है। ये दवाएं अंडाशय को उत्प्रेरित करने और विनियमित करने में मदद करती हैं। आप अपने विशेषज्ञ से विभिन्न प्रकार की दवाओं के बारे में बात कर सकते हैं और प्रत्येक में इसके लाभ और जोखिमों को समझ सकते हैं।

3-हिस्टेरोस्कोपिक सर्जरी

-यह सर्जरी यूटेराइन सेप्टम, इंट्रा यूटेराइन स्कार्स और एंडोमेट्रियल पॉलिप्स जैसे गर्भाशय संबंधी मुद्दों का सफलतापूर्वक इलाज कर सकती है।

आहार और जीवन शैली बदलने से भी सहायता मिलेगी?

इन्दिरा आई वी एफ फरीदाबाद की नि: संतानता एवं आई वी एफ स्पेशलिस्ट डॉ. ज्योति गुप्ता के अनुसार

– आपकी वर्तमान जीवनशैली, खाने की आदतें, आपके द्वारा अनुसरण किए जाने वाले आहार और आपकी नींद के पैटर्न भी सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी के लिए समान रूप से जिम्मेदार हो सकते हैं। यदि पहली डिलीवरी के समय वजन बढ़ा है अथवा कम हुआ है तब भी गर्भधारण में दिक्कत आ सकती है। यदि आप और आपके पति एक भागती जीवनशैली अपना रहे हैं जिसमें धूम्रपान, एल्कोहल लेना और देर रात तक जगना शामिल हैं, तो उन्हें कम करना सबसे अच्छा है। एक स्वस्थ जीवनशैली ही गर्भधारण करने की आपकी क्षमता को बढ़ा सकती है।

सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी से आप कैसे निजात पा सकते हैं?

यदि आप सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी से गुजर रहे हैं, तो इसके साथ सफलतापूर्वक मुकाबला करने के कुछ तरीके हैं:

1.पहले बच्चे के जन्म के बाद से शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तनों को समझें

-उम्र बढ़ने के साथ ही आपका शरीर कई बदलावों से गुजरता है। इस दौर में आपकी अंडे की गुणवत्ता और प्रजनन क्षमता कम हो जाती है। दवाएं, वजन बढ़ाना, तनाव इत्यादि कारण गर्भधारण करने की असमर्थता में योगदान देते हैं।

2.एक योजना बनाएं

-गर्भधारण करने के अपने अगले कदमों के बारे में अपने साथी के साथ योजना बनाएं। इसमें यह विचार करें कि आपको आईवीएफ पर जाना है या अंडे डोनर या प्रजनन उपचार के तरीके अपनाने हैं।

3.सक्रिय रूप से चिकित्सा उपायों पर ध्यान केन्द्रित करें

-यदि आप अपनी प्रजनन क्षमता को लेकर चिंतित हैं तो प्रजनन विशेषज्ञ के पास जाएं। आपकी प्रजनन क्षमता उम्र बढ़ने के साथ कम होती है इसलिए ऐसे समय में चिकित्सक आपके लिए बेस्ट ट्रीटमेंट उपायों की योजना बनाने के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।

4.किए जाने वाले परीक्षणों के बारे में जानें

-नि:संतानता के कारण को निर्धारित करने के लिए आपके जो भी परीक्षण मसलन अल्ट्रासाउंड, रक्त परीक्षण, एक्स-रे आदि हुए हों तो इनके बारे में जानकारी रखें । आपके पति का वीर्य विश्लेषण भी हो सकता है जो शुक्राणु की गुणवत्ता और संख्या की जांच करता है।

5.यदि आप उपचार से गुजरने की योजना बना रहे हैं तो तार्किक योजना बनाएं

-प्रजनन उपचार के लिए जांच और डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता हो सकती है। इस प्रक्रिया के दौरान यह सुनिश्चित करें कि आपने बच्चों और घरेलू काम सहित आपकी अन्य प्रतिबद्धताओं के लिए भी आगे की योजना बनाई है।

6.जटिल सवालों के जवाब देने के लिए तैयार रहें

-अपने जवाबों को परिवार और दोस्तों के लिए तैयार करें जो पूछते हैं कि आप कब एक और बच्चा करेंगे?

7.वर्तमान समय पर फोकस करें और अपने बच्चे के साथ समय का आनंद लेंवे जो अभी आपके साथ है|

डॉक्टर के पास कब जाएँ –

इन्दिरा आई वी एफ मुंबई के नि: संतानता एवं आई वी एफ स्पेशलिस्ट डॉ.रिनोय बताते है कि

-यदि आप एक वर्ष तक बिना गर्भनिरोधक के इस्तेमाल से अपने साथी के साथ सामान्य यौन संबंध रखते हैं और फिर भी प्रेगनेंसी हो पा रही है तो आपको फर्टिलिटी डॉक्टर से मिलना चाहिए। डॉक्टर से सलाह के लिए अपने साथी को भी साथ ले जाए क्योंकि दोनों जिम्मेदार हो सकते हैं |जब आपकी उम्र में बढ़ रही हो या ऐसी स्थिति से पीड़ित हो जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सके, ऐसे मामलों में आपको जल्दी डॉक्टर से मिल लेना चाहिए क्योंकि सैकेण्डरी इनफर्टिलिटी का इलाज करना भी महत्वपूर्ण है |

सफलता की संभावना क्या हैं?

-सामान्य से अधिक उम्र सफलता की संभावना को प्रभावित करती है। यदि महिला की उम्र 36 वर्ष से कम है तो संभावनाएं ज्यादा है। अधिक उम्र की महिलाओं में सफ़लता दर समान सफलता नहीं मिल सकती है। सेकेंडरी इनफर्टिलिटी के मामलो में आई वी एफ तकनीक अधिक प्रभावी है और सफलता की संभावनाए भी अधिक हैं |

-ज्यादातर दम्पतियों का पहले बच्चे के साथ कुछ समय बीत चुका होता है। सभी अच्छे से जानते हैं कि जितना समय निकल जाए उतना ही मुश्किल है गर्भ धारण करना। आपने वजन बढ़ाया हो, सर्जरी कराई हो या आपके साथी की शुक्राणु की गुणवत्ता कम और मात्रा भी बिगड़ गई हो तो भी गर्भधारण में समस्या आती है |

 

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