गर्भाशय में टीबी (Uterus TB) महिलाओं में निःसंतानता का एक महत्वपूर्ण कारण है। यूट्रस टीबी सामान्य रूप से फेफड़ों में होने वाली टीबी ही है, लेकिन कुछ मामलों में यह संक्रमण रक्त के ज़रिए गर्भाशय तक पहुँच जाता है। इससे गर्भाशय की अंदरूनी परत (एंडोमेट्रियम ) और फैलोपियन ट्यूब्स को नुकसान होता है, जिससे गर्भधारण में कठिनाई आती है। अच्छी बात यह है कि समय पर पहचान और इलाज से न सिर्फ संक्रमण ठीक किया जा सकता है, बल्कि भविष्य में माँ बनना भी संभव किया जा सकता है।
गर्भाशय में टीबी (Uterus TB) को जेनिटल ट्यूबरक्लोसिस (Genital Tuberculosis) भी कहा जाता है। यह संक्रमण माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (Mycobacterium tuberculosis) नामक जीवाणु (बैक्टीरिया) के कारण होता है, जो आमतौर पर फेफड़ों से शुरू होकर खून या लसीका (लिम्फैटिक सिस्टम lymphatic system) के ज़रिए प्रजनन अंगों तक पहुँच जाता है।
सामान्य टीबी में संक्रमण फेफड़ों या छाती तक सीमित रहता है, जबकि गर्भाशय टीबी में यह संक्रमण फैलोपियन ट्यूब्स, अंडाशय और गर्भाशय की अंदरूनी परत तक पहुँच जाता है।
यह अधिकतर सेकेंडरी इंफेक्शन होता है यानी शरीर में पहले से मौजूद टीबी (जैसे फेफड़ों की) से संक्रमण गर्भाशय तक पहुँच जाता है।
गर्भाशय टीबी में पीरियड्स का अनियमित होना, पेट में दर्द, और बार-बार गर्भपात इसके शुरुआती संकेत हो सकते हैं।
टीबी के लक्षण धीरे-धीरे उभरते हैं और कई बार सामान्य कमजोरी या मासिक धर्म की समस्या समझकर नज़रअंदाज़ कर दिए जाते हैं। अगर नीचे दिए गए लक्षण लगातार बने रहें, तो जांच कराना ज़रूरी है।
लगातार तीन हफ्ते से ज़्यादा खाँसी रहना, हल्का बुखार या रात में पसीना आना।
भूख कम लगना, वजन घट जाना और शरीर में सामान्य थकावट।
पीरियड्स का न आना, बहुत कम या बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग होना, या बीच-बीच में रुक-रुक कर आना।
निचले पेट या कमर के हिस्से में लगातार भारीपन या दर्द रहना।
अगर इन लक्षणों के साथ कमजोरी या मासिक गड़बड़ी दिखे, तो फेफड़ों और गर्भाशय दोनों की जांच करानी चाहिए।
टीबी एक संक्रमण है जो संक्रमित व्यक्ति की खाँसी या छींक से हवा के ज़रिए फैल सकती है। एक बार शरीर में जाने के बाद यह बैक्टीरिया कई अंगों में पहुंच सकता है। जब यह संक्रमण रक्त प्रवाह या लसीका प्रणाली के माध्यम से गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब या अंडाशय तक पहुँचता है, तब इसे गर्भाशय की टीबी (यूट्रस टीबी or Uterus TB) कहा जाता है।
गर्भाशय टीबी महिलाओं की प्रजनन क्षमता (फर्टिलिटी) को कई तरीकों से प्रभावित करता है:
गर्भाशय में टीबी की पुष्टि के लिए डॉक्टर कुछ विशेष जांचें करवाते हैं।
Mantoux स्किन टेस्ट या टीबी गोल्ड टेस्ट (TB Gold Test) से यह देखा जाता है कि शरीर में टीबी संक्रमण सक्रिय है या नहीं।
गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब्स की स्थिति देखने के लिए। HSG से ट्यूब ब्लॉकेज का पता लगाया जा सकता है।
गर्भाशय की अंदरूनी परत से छोटा नमूना लेकर लैब में संक्रमण (इन्फेक्शन) की पुष्टि की जाती है। यह सबसे सटीक जांच मानी जाती है।
इसका इलाज फेफड़ों की टीबी की तरह ही किया जाता है। WHO और ICMR के अनुसार, 6 से 9 महीने का डॉक्टरों की सलाह से एंटी-टीबी कोर्स से यूट्रस टीबी को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है।
संतुलित आहार, पर्याप्त नींद और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ जैसे हल्दी, लहसुन, हरी सब्ज़ियाँ और प्रोटीन युक्त आहार बेहद फायदेमंद हैं।
अगर संक्रमण से गर्भाशय की परत या ट्यूब्स में स्थायी नुकसान हो गया हो जैसे मवाद (पस) इकट्ठा हो गया है, बहुत दर्द और हैवी ब्लीडिंग हो तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह दे सकते हैं।
इलाज पूरा होने के बाद जब संक्रमण पूरी तरह खत्म हो जाता है, तब गर्भधारण की योजना (प्रेगनेंसी प्लान) बनाई जा सकती है।
टीबी का इलाज पूरा करने के बाद महिलाओं की फर्टिलिटी में सुधार देखा गया है।
गर्भाशय में टीबी (Uterus TB) एक ऐसी स्थिति है जो महिला की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है, लेकिन यह पूरी तरह इलाज योग्य बीमारी है। समय पर पहचान, पूरा इलाज और डॉक्टर की निगरानी में जीवन शैली सुधार से गर्भधारण पूरी तरह संभव है।
इसलिए किसी भी लक्षण को हल्के में न लें। सही उपचार ही स्वस्थ मातृत्व की पहली सीढ़ी है।
यूट्रस टीबी सेकेंडरी इन्फेक्शन है। यह फेफड़ों या शरीर के किसी अन्य हिस्से की टीबी से संक्रमण के फैलने पर गर्भाशय तक पहुँच जाती है।
पीरियड्स में गड़बड़ी जैसे कभी बहुत ज्यादा और कभी बिलकुल न होना, पेट दर्द, कमजोरी, और बार-बार गर्भपात होना ।
हाँ, इलाज पूरा करने के बाद गर्भधारण संभव है, कई बार IVF या ICSI की मदद से प्रेगनेंसी कंसीव की जा सकती है।
अनियमित मासिक धर्म, दर्द, पेल्विक सूजन, और गर्भधारण में कठिनाई।
6–9 महीने की एंटी-टीबी दवाओं, पोषण, और ज़रूरत पड़ने पर सर्जरी से।