बांझपन किसी भी महिला को मानसिक रूप से परेशान कर देता है । संतान की चाह और बार-बार असफलता उसे अंदर से तोड़ देते हैं। निःसंतान दम्पती ईलाज अपनाना तो चाहते हैं लेकिन जानकारी का अभाव और डर उन्हें कदम उठाने से रोकता है। निःसंतान दम्पतियों के संतान सुख देने के लिए 40 वर्ष पहले आईवीएफ तकनीक का आविष्कार किया गया लेकिन आज भी इसको लेकर जितनी जागरूकता होनी चाहिए उतनी नहीं हो पायी है। आईवीएफ जिसे आमतौर पर टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है को लेकर कई तरह की गलतधारणाएं लोगों के मन में है उनमें से एक है आईवीएफ से होने वाले बच्चे प्राकृतिक गर्भधारण से होने वाले बच्चों की तुलना में कमजोर होते हैं।
कई लोग समझते हैं कि आईवीएफ शिशु पूरी तरह ‘सामान्य’ नहीं होते क्योंकि प्राकृतिक गर्भाधान नहीं होता, बल्कि वे डाक्टरों द्वारा मशीन में पैदा होते हैं जबकि यह गलत अवधारणा है। जो दम्पती फर्टिलिटी साॅल्यूशन के लिए आगे आना चाहते हैं उन्हें फर्टिलिटी एक्सपर्ट से परामर्श आवश्यक रूप से लेना चाहिए ।
आईवीएफ से जन्मे बच्चे भी उतने ही सामान्य होते हैं, उनकी शारीरिक व मानसिक क्षमता भी वैसी ही होती है जैसे प्राकृतिक गर्भाधान से जन्मे बच्चों में होती हैं और आईवीएफ प्रक्रिया के परिणामस्वरूप भी बच्चों का जन्म प्राकृतिक तरीके से ही होता है। जरूरी यह है कि अच्छे से अनुसंधान करें और एक अनुभवी व जानकारी डाॅक्टर से सलाह करें ताकि गलतफहमियों को दूर किया जा सके। आईवीएफ में शुक्राणु और अण्डे का मिलन लैब में होता है और बाद में उसे गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है इसके बाद सारी प्रक्रिया प्राकृतिक गर्भधारण जैसी ही होती है।
किसी भी दम्पती को प्राकृतिक गर्भधारण होने पर भ्रूण में 1-3 प्रतिशत जेनेटिक विकृति की संभावना रहती है। नवीनतम स्क्रीनिंग तकनीक की मदद से उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हो सकती है। वे दम्पती जिन्हें बार-बार गर्भपात की समस्या होती है प्री जेनेटिक स्क्रीनिंग की मदद से जेनेटिकली स्वस्थ भ्रूण का चयन कर संतान प्राप्ति संभव है। दुनियाभर में 80 लाख से ज्यादा आईवीएफ संताने हैं जो स्वस्थ हैं।