पुरुष निःसंतानता (मेल इन्फर्टिलिटी ) आज के समय की एक बढ़ती हुई स्वास्थ्य समस्या है। ICMR की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग हर छठे दंपत्ति को गर्भधारण में कठिनाई होती है, जिनमें से करीब 30-40% मामलों में कारण पुरुष से जुड़ा होता है।
इनमें से एक प्रमुख कारण है निल शुक्राणु, यानी वीर्य में शुक्राणु का पूरी तरह अनुपस्थित होना जिसे बोलचाल के तौर पर ज़ीरो स्पर्म काउंट भी कहा जाता है (zero sperm count kya hota hai)।
निल शुक्राणु (Azoospermia) का अर्थ है पुरुष के वीर्य (Semen) में शुक्राणु (Sperm) का न होना । यह दो प्रकार का हो सकता है:
जब शुक्राणु बनते तो हैं, लेकिन किसी रुकावट (जैसे वास डिफरेंस या एपिडिडायमिस ब्लॉकेज) के कारण बाहर नहीं आ पाते।
जब अंडकोष (टेस्टीस) ही शुक्राणु बनाना बंद कर देते हैं।
इस स्थिति के पीछे कई शारीरिक, हार्मोनल और जीवनशैली से जुड़े कारण हो सकते हैं।
ज़ीरो स्पर्म काउंट के कोई सीधे लक्षण नहीं होते, लेकिन कुछ संकेत हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए:
अगर एक साल से गर्भधारण नहीं हो रहा, तो दोनों पार्टनर्स को साथ में फर्टिलिटी जांच करानी चाहिए। याद रहे कि निःसंतानता के इलाज़ के लिये सिर्फ महिला नहीं, पुरुष की जांच भी ज़रूरी है।
निल शुक्राणु के कई कारण हो सकते हैं, जो शरीर के अंदर और बाहर दोनों से जुड़े होते हैं।
स्पर्म बनने के लिए पिट्यूटरी ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन (LH और FSH) का संतुलन बहुत ज़रूरी है।
इनमें गड़बड़ी होने पर शुक्राणु बनना बंद हो सकता है।
कुछ पुरुषों में जन्म से ही Y क्रोमोसोम की गड़बड़ी या Klinefelter सिंड्रोम जैसी आनुवंशिक स्थितियाँ होती हैं, जिनसे शुक्राणु उत्पादन (स्पर्म प्रोडक्शन) प्रभावित होता है।
मम्प्स (Mumps), यौन संक्रमण (STI), या अंडकोष में सूजन (Orchitis) भी स्पर्म बनाने वाली कोशिकाओं को नुकसान पहुँचा सकती हैं।
कभी-कभी स्पर्म बनने के बाद बाहर निकलने का रास्ता बंद हो जाता है। यह जन्मजात भी हो सकता है या किसी सर्जरी / संक्रमण के बाद।
कैंसर इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाइयाँ और रेडिएशन शुक्राणु निर्माण (स्पर्म प्रोडक्शन) को प्रभावित कर सकती हैं।
लगातार तनाव, धूम्रपान, शराब, ड्रग्स का सेवन, मोटापा और नींद की कमी ये सभी स्पर्म प्रोडक्शन पर नकारात्मक असर डालते हैं।
निल शुक्राणु (ज़ीरो स्पर्म काउंट) की पुष्टि के लिए कुछ विशेष जांचें की जाती हैं:
अच्छी बात यह है कि आज चिकित्सा में इतनी प्रगति हो चुकी है कि निल शुक्राणु वाले पुरुष भी पिता बन सकते हैं। इलाज कारण पर निर्भर करता है।
आज के समय में अज़ूस्पर्मिया का मतलब “पिता न बन पाना” नहीं है। IVF और ICSI जैसी आधुनिक तकनीकों से कई पुरुष सफलतापूर्वक पिता बन चुके हैं।
ICMR और WHO के अनुसार, ICSI तकनीक से ऐसे मामलों में भी 30–50% तक सफलता दर देखी गई है।
निल शुक्राणु का इलाज संभव है। बस ज़रूरत है सही समय पर जांच, योग्य फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से सलाह, और धैर्य की। समझदारी और सही दिशा में कदम उठाने से आज के समय में लगभग हर पुरुष का पिता बनने का सपना पूरा हो सकता है।
जब वीर्य में शुक्राणु पूरी तरह अनुपस्थित हों, तो इसे निल शुक्राणु (ज़ीरो स्पर्म काउंट) या अज़ूस्पर्मिया कहते हैं।
संतान न होना, यौन इच्छा में कमी, इरेक्शन बिलकुल या पूरी तरह न होना या हार्मोनल असंतुलन के संकेत।
हार्मोनल असंतुलन, अंडकोष या नलिकाओं में ब्लॉकेज, संक्रमण, कैंसर ट्रीटमेंट, या तनावपूर्ण जीवनशैली (स्ट्रेसफुल लाइफस्टाइल)।
हाँ, अधिकांश मामलों में इलाज संभव है। दवाओं, सर्जरी या ICSI तकनीक से ज़ीरो स्पर्म काउंट का इलाज़ किया जा सकता है।
सीमन एनालिसिस, हार्मोन टेस्ट और टेस्टिकुलर बायोप्सी से।
IVF/ICSI तकनीक या डोनर स्पर्म के माध्यम से।
लो-स्पर्म काउंट में स्पर्म कम होते हैं, जबकि निल शुक्राणु में एक भी नहीं होता।
हाँ, तनाव कम करने, पौष्टिक भोजन शैली (हेल्दी डाइट) अपनाने और नशा छोड़ने से स्पर्म प्रोडक्शन बेहतर हो सकता है।