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पेरिमेनोपॉज़ क्या है? लक्षण, कारण और देखभाल (Perimenopause: Meaning, Symptoms & Management in Hindi)

Last updated: November 28, 2025

Overview

जब महिला के शरीर में मेनोपॉज़ से कुछ वर्ष पहले हॉर्मोनल बदलाव शुरू हो जाते हैं तब उसे पेरिमेनोपॉज़ (Perimenopause) कहा जाता है। आमतौर पर पेरिमेनोपॉज़ 40 से 45 साल की उम्र के आसपास दिखाई देने लगती है, लेकिन कई महिलाओं में यह इससे थोड़ा पहले या बाद में भी शुरू हो सकती है। इस दौरान एस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हार्मोन का उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है, जिसकी वजह से पीरियड्स अनियमित होने लगते हैं और शरीर में कई तरह के बदलाव महसूस होने लगते हैं। पेरिमेनोपॉज़ महिला की फर्टिलिटी (fertility) पर भी प्रभाव डालता है, क्योंकि इस समय ओव्यूलेशन रेगुलर नहीं होता। यह बदलाव पूरी तरह नेचुरल हैं और हर महिला इन्हें अलग-अलग मात्रा में महसूस करती है।

पेरिमेनोपॉज़ क्या है? (Perimenopause Meaning in Hindi)

अब समझते हैं Perimenopause meaning in Hindi तो यह मेनोपॉज़ से पहले की अवस्था है, जब महिला का शरीर धीरे-धीरे उस अवस्था की ओर बढ़ रहा होता है जहाँ पीरियड्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं।

इस दौरान हॉर्मोनल असंतुलन, विशेषकर एस्ट्रोजन की कमी, शरीर के कई कार्यों यानी बॉडी फंक्शन्स को प्रभावित करने लगता है जैसे मेंस्ट्रुअल साइकिल (menstrual cycle ), नींद, मूड, हड्डियों की मज़बूती (bone health) और एनर्जी लेवल शामिल हैं।

पेरिमेनोपॉज़ कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक बिल्कुल प्राकृतिक जैविक बदलाव (बायोलॉजिकल चेंज) है, जो हर महिला के जीवन में आता है।

पीरियड्स पहले की तुलना में कम या ज़्यादा आ सकते हैं, बीच-बीच में लंबा गैप हो सकता है, या फ्लो में भी बदलाव हो सकता है।

पेरिमेनोपॉज़ के लक्षण (Perimenopause Symptoms in Hindi)

पेरिमेनोपॉज़ के लक्षण हर महिला में अलग तरीके से दिखाई देते हैं। नीचे वह सबसे आम लक्षण दिए गए हैं:

  • असामान्य या अनियमित पीरियड्स (Irregular periods): कभी बहुत देर से, कभी बहुत जल्दी, या कभी-कभी एक-दो महीने छोड़कर पीरियड आना।
  • गर्मी या अचानक गर्म फ्लैशेस (Hot flashes): शरीर में अचानक गर्मी महसूस होना, चेहरा लाल पड़ जाना, पसीना आना।
  • रात में पसीना आना (Night sweats): नींद में अचानक गर्मी बढ़ जाना, सोते समय असहजता महसूस होना।
  • नींद में कठिनाई (Sleep disturbances): जल्दी नींद न आना, रात में कई बार नींद खुलना, सुबह थकान महसूस करना।
  • मूड स्विंग्स (Mood changes): मूड का बार-बार बदलना, चिड़चिड़ापन या बेचैनी महसूस होना।
  • थकान या कमजोरी (Fatigue): पर्याप्त नींद के बाद भी ऊर्जा कम महसूस होना।
  • हड्डियों और जोड़ों में दर्द (Bone or joint discomfort): एस्ट्रोजन कम होने पर बोन हैल्थ प्रभावित होने लगती है।
  • वजन बढ़ना: मेटाबोलिज़्म धीमा होने के कारण मोटापा बढ़ने लगता है।
  • स्किन और बालों में बदलाव: स्किन ड्राई होना, बालों का पतला होना होना शुरू हो जाता है।
  • योनि में सूखापन या असहजता: एस्ट्रोजन कम होने के कारण वजाइना में ड्राइनेस होना शुरू हो जाता है।

ये सभी लक्षण समय के साथ बदलते रहते हैं। कुछ महिलाओं में इनमें से सिर्फ 2–3 लक्षण होते हैं, जबकि कुछ में लगभग सभी।

पेरिमेनोपॉज़ के कारण (Causes of Perimenopause)

पेरिमेनोपॉज़ का मुख्य कारण हॉर्मोनल उतार-चढ़ाव है, विशेषकर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की कमी। उम्र बढ़ने के साथ ओवरीज़ (ovaries) की क्षमता कम होती जाती है, जिससे ये हार्मोन नियमित मात्रा (रेगुलर क्वांटिटी) में नहीं बनते।

नीचे पेरिमेनोपॉज़ के प्रमुख कारण दिए गए हैं:

  • हॉर्मोनल फ्लक्चुएशन (Hormonal fluctuations): एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन लेवल का अनियमित होना।
  • ओवरीज़ का उम्र बढ़ने के साथ कमजोर होना: ओव्यूलेशन हर महीने नहीं होता और एग क्वालिटी भी प्रभावित होने लगती है।
  • जिनेटिक्स (Genetics): आपकी मां या बहन को मेनोपॉज़ जल्दी हुआ है तो आपके साथ भी ऐसा हो सकता है।
  • लाइफस्टाइल: तनाव (stress), कम नींद, अनियमित डाइट और बिलकुल भी शारीरिक काम न करना (sedentary lifestyle) इसका असर बढ़ा देते हैं।

पेरिमेनोपॉज़ की समय-सीमा और गंभीरता (severity) हर महिला में अलग होती है।

पेरिमेनोपॉज़ और स्वास्थ्य पर प्रभाव

पेरिमेनोपॉज़ सिर्फ पीरियड्स को प्रभावित नहीं करता, बल्कि पूरे शरीर पर इसका असर दिखाई देता है। हॉर्मोनल बदलाव कई महत्वपूर्ण बॉडी सिस्टम जैसे हड्डियाँ, हृदय, नींद और मानसिक स्वास्थ्य यानी मेंटल हैल्थ पर भी प्रभाव डालते हैं। नीचे इस दौरान होने वाले कुछ आम प्रभाव दिए गए हैं:

  • हड्डियों की मजबूती में कमी: एस्ट्रोजन कम होने पर हड्डियाँ धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं, जिससे बोन डेंसिटी कम हो सकती है और ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) का जोखिम बढ़ जाता है।
  • दिल से जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ना: कॉलेस्ट्रॉल (cholesterol) स्तर में बदलाव और ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव हो सकता है।
  • मेटाबॉलिज़्म धीमा होना: शरीर की ऊर्जा उपयोग करने की क्षमता कम हो जाती है, जिसके कारण वजन बढ़ना और पेट के आसपास चर्बी जमा होना आम हो जाता है।
  • इंसुलिन और शुगर मेटाबॉलिज़्म: ग्लूकोज़ को प्रोसेस करने की क्षमता पहले जितनी नहीं रहती, जिससे शरीर में शुगर लेवल प्रभावित हो सकता है।
  • मांसपेशियों की ताकत और जॉइंट्स में कमी: जोड़ों में अकड़न या हल्का दर्द महसूस हो सकता है और मांसपेशियों की शक्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है।

इन बदलावों को समय पर पहचान कर सही देखभाल की जाए तो आने वाले समय में स्वास्थ्य को सही रखा जा सकता है।

पेरिमेनोपॉज़ का प्रबंधन और देखभाल (Management of Perimenopause in Hindi)

पेरिमेनोपॉज़ के दौरान सही लाइफस्टाइल अपनाने से इसके लक्षण काफी हद तक मैनेज किए जा सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित काम करें:

  • संतुलित आहार (Balanced diet): कैल्शियम, विटामिन D, प्रोटीन और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर भोजन लें।
  • नियमित व्यायाम (Regular exercise): योग, वॉकिंग, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग जैसी एक्टिविटीज़ हड्डियों को मजबूत रखती हैं।
  • स्ट्रैस मैनेजमेंट: मेडिटेशन, डीप ब्रीथिंग और अपने कामों का रूटीन बनाना मदद करता है।
  • नींद का ध्यान रखें: पूरी नींद लें और सोने-जागने का समय नियमित रखें।
  • हॉर्मोन थेरेपी (Hormone therapy): डॉक्टर सलाह पर हॉर्मोन थेरेपी भी ले सकती हैं।
  • रेगुलर हैल्थ चेकअप: बोन डेंसिटी टेस्ट (bone density test), ब्लड प्रेशर, थायराइड, और शुगर लेवल की समय-समय पर जांच करवाती रहें।

लाइफस्टाइल में छोटे छोटे बदलाव इस कंडीशन में काफी आराम पहुँचा बना सकते हैं।

क्या पेरिमेनोपॉज़ निःसंतानता का कारण बन सकता है? (Can Perimenopause Cause Infertility?)

पेरिमेनोपॉज़ में ओव्यूलेशन नियमित नहीं होता, और एग क्वालिटी भी उम्र के साथ प्रभावित होती है इस वजह से नेचुरल प्रेगनेंसी की संभावना कम हो जाती है। नीचे वे बदलाव दिए गए हैं जो फर्टिलिटी को प्रभावित करते हैं:

  • ओवेरियन रिज़र्व कम होना: उम्र बढ़ने के साथ एग्स की संख्या घटने लगती है।
  • एग क्वालिटी धीरे-धीरे कमजोर होना: पुराने एग्स में जेनेटिक समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है।
  • ओव्यूलेशन का नियमित न होना: कई महीनों में ओव्यूलेशन नहीं होता या समय बदल जाता है, जिससे कंसीव करने का सही समय पकड़ना मुश्किल होता है।
  • हार्मोनल असंतुलन के कारण इम्प्लांटेशन में दिक्कत: गर्भाशय की परत (uterine lining) हर महीने एक समान तरीके से तैयार नहीं होती।

गर्भधारण चाहने वाले कपल्स के लिए सुझाव:

  • जल्द से जल्द इवैल्यूएशन कराएं
  • नियमित ओव्यूलेशन ट्रैक करें
  • हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं
  • आवश्यकता होने पर फ़र्टिलिटी ऑप्शंस जैसे IVF पर विचार किया जा सकता है

IVF, ICSI या डोनर एग प्रोग्राम जैसी टेक्नोलॉजी पेरिमेनोपॉज़ में भी प्रेगनेंसी संभव कर माँ बनने का अवसर प्रदान कर सकती हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)

पेरिमेनोपॉज़ महिला के जीवन का एक महत्वपूर्ण बायोलॉजिकल फेज है, जहाँ शरीर मेनोपॉज़ की ओर बढ़ रहा होता है। इस दौरान हार्मोनल बदलाव कई शारीरिक और मानसिक लक्षण पैदा कर सकते हैं, इसलिए उन्हें सही समय पर पहचानना और प्रबंधित करना ज़रूरी है।
सही आहार, नियमित व्यायाम, तनाव नियंत्रण और मेडिकल परामर्श से इस चरण को आरामदायक और स्वस्थ बनाया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न(FAQs)

क्या पेरिमेनोपॉज़ में गर्भधारण संभव है?

 

हाँ, लेकिन संभावना कम होती है क्योंकि ओव्यूलेशन अनियमित होता है।

पेरिमेनोपॉज़ के दौरान कौन से स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाते हैं?

 

हड्डियाँ कमजोर होना, नींद की दिक्कत, हार्ट से संबंधित रिस्क।

पेरिमेनोपॉज़ में पीरियड्स कितनी बार आते हैं?

 

हर महिला में अलग होता है किसी में जल्दी, किसी में देर से आ सकते हैं।

पेरिमेनोपॉज में क्या नहीं खाना चाहिए?

 

बहुत मीठा, अधिक तला हुआ, बहुत ज्यादा कैफीन या अल्कोहल।

पीरियड बंद होने की सही उम्र क्या है?

 

आमतौर पर 45–52 वर्ष के बीच मेनोपॉज़ होता है।

**Disclaimer: The information provided here serves as a general guide and does not constitute medical advice. We strongly advise consulting a certified fertility expert for professional assessment and personalized treatment recommendations.
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