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आईवीएफ की सफलता में प्रोलैक्टिन परीक्षण कितना महत्वपूर्ण है?

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Last updated: December 02, 2025

Overview

आईवीएफ यानी इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (in-vitro fertilization) शुरू करने से पहले कई जरूरी हार्मोन टेस्ट करवाए जाते हैं। इन्हीं में से एक प्रोलैक्टिन (prolactin) टेस्ट एक महत्वपूर्ण हार्मोन टेस्ट है, जो महिलाओं के पीरियड्स, ओव्यूलेशन (ovulation) और प्रेगनेंसी की क्षमता पर असर डालता है। अगर प्रोलैक्टिन असामान्य हो जाए (कम हो या ज़्यादा) तो उसकी वजह से एग डेवलपमेंट, प्रजनन क्षमता और IVF के रिज़ल्ट पर असर पड़ सकता है। इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि प्रोलैक्टिन क्या है, IVF से पहले यह टेस्ट क्यों करवाया जाता है, और इसके नॉर्मल होने से IVF की सफलता कितनी बढ़ जाती है।

प्रोलैक्टिन क्या है? (What Is Prolactin?)

प्रोलैक्टिन एक हार्मोन है जिसे पिट्यूटरी ग्लैंड (pituitary gland) बनाती है। यह ग्लैंड दिमाग के ठीक नीचे होती है और शरीर के कई हार्मोनल फ़ंक्शन्स को कंट्रोल करती है।

महिलाओं में प्रोलैक्टिन का मुख्य काम स्तन में दूध बनाना और प्रेगनेंसी के दौरान ब्रैस्ट टिश्यू को तैयार करना होता है। लेकिन इसके अलावा यह हॉर्मोन पीरियड्स के साइकिल, ओव्यूलेशन और फर्टिलिटी पर भी असर डालता है।

  • महिलाओं में प्रोलैक्टिन लेवल आमतौर पर 10–25 ng/mL के बीच होता है।
  • प्रेगनेंसी और ब्रैस्टफीडिंग के समय यह स्वाभाविक रूप से बढ़ जाता है, जो बिल्कुल सामान्य है।

अगर प्रोलैक्टिन बहुत ज़्यादा बढ़ जाए, तो ओव्यूलेशन रुक सकता है, पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं और IVF में एग परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है।

IVF से पहले प्रोलैक्टिन टेस्ट क्यों किया जाता है?

IVF शुरू करने से पहले प्रोलैक्टिन का लेवल बिल्कुल नॉर्मल होना चाहिए, क्योंकि IVF की पूरी प्रक्रिया ही हार्मोनल स्टिम्युलेशन (stimulation) पर आधारित होती है। प्रोलैक्टिन असामान्य होने पर IVF का रिजल्ट प्रभावित हो सकता है।

  • प्रोलैक्टिन टेस्ट हार्मोनल इम्बैलेंस (hormonal imbalance) की पहचान के लिए किया जाता है, क्योंकि बढ़ा हुआ प्रोलैक्टिन ओव्यूलेशन में रुकावट डाल सकता है।
  • एग डेवलपमेंट ठीक चल रहा है या नहीं देखने के लिए भी प्रोलैक्टिन टेस्ट जरुरी होता है क्योंकि असंतुलित प्रोलैक्टिन एग की क्वालिटी को कम कर सकता है।
  • प्रोलैक्टिन टेस्ट यूटेरस की एंडोमेट्रियल लाइनिंग (endometrial lining) सही है या नहीं जानने के लिए किया जाता है क्योंकि इम्प्लांटेशन के लिए लाइनिंग सही होनी ज़रूरी होती है।
  • PCOS या थायरॉयड (thyroid) जैसी स्थितियों का पता लगाने के लिए भी प्रोलैक्टिन टेस्ट किया जाता है क्योंकि इन कंडीशन्स में प्रोलैक्टिन लेवल अक्सर बढ़ जाता है।

इन कारणों की वजह से डॉक्टर IVF शुरू करने से पहले प्रोलैक्टिन टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं।

IVF में प्रोलैक्टिन टेस्ट का महत्व (Prolactin Test in IVF: Why It Matters)

IVF का हर स्टेप, ओवेरियन स्टिम्युलेशन से लेकर एग रिट्रीवल, फर्टिलाइज़ेशन और एम्ब्रियो ट्रांसफर तक, हार्मोन बैलेंस पर निर्भर करता है।

अगर प्रोलैक्टिन बढ़ा हुआ हो, तो IVF की सफलता दर यानी सक्सेस रेट (success rate) पर सीधा असर पड़ सकता है।

  • ओवेरियन स्टिम्युलेशन (ovarian stimulation) को सफल बनाने के लिए प्रोलैक्टिन टेस्ट किया जाता है, क्योंकि संतुलित प्रोलैक्टिन होने पर अंडाशय (ovary) पर दवाओं अच्छा असर पड़ता है।
  • एग की क्वालिटी बेहतर रखने के लिए भी प्रोलैक्टिन का संतुलन जरूरी होता है, क्योंकि असामान्य प्रोलैक्टिन एग बनने की प्रक्रिया को धीमा या कमजोर कर सकता है।
  • एंडोमेट्रियल लाइनिंग (endometrial lining) सही है या नहीं, यह जानने के लिए भी प्रोलैक्टिन जांच की जाती है, क्योंकि IVF में हेल्दी और सही मोटाई वाली लाइनिंग सबसे ज़रूरी होती है।
  • इम्प्लांटेशन (implantation) की सफलता बढ़ाने के लिए भी प्रोलैक्टिन का सही लेवल जरुरी होता है, क्योंकि बैलेंस्ड प्रोलैक्टिन एम्ब्रियो के इम्प्लांट होने के चांस बढ़ा देता है।
  • IVF असफल होने (IVF failure) का कारण समझने के लिए भी प्रोलैक्टिन टेस्ट किया जाता है, क्योंकि कई बार अनएक्सप्लेंड IVF फेलियर (unexplained IVF failure) के पीछे हाई प्रोलैक्टिन ही जिम्मेदार होता है।
  • सही प्रेगनेंसी सपोर्ट के लिए भी प्रोलैक्टिन जरूरी है, क्योंकि बैलेंस्ड प्रोलैक्टिन से गर्भधारण और प्रेगनेंसी मेंटेनेंस (pregnancy maintenance) दोनों आसान हो जाते हैं।

इसी वजह से प्रोलैक्टिन टेस्ट को IVF में एक जरुरी हॉर्मोनल टेस्ट माना जाता है।

प्रोलैक्टिन टेस्ट कब करवाना चाहिए?(When is a Prolactin Test Advised?)

कुछ स्थितियों में प्रोलैक्टिन टेस्ट करवाना ज़रूरी होता है, खासकर जब आप IVF प्लान कर रहे हों तब।

  • सही समय पर पीरियड्स न होने पर
  • बार-बार IVF फेल हो जाने पर
  • PCOS के सिम्पटम्स दिखाई देने पर
  • ब्रैस्ट्स से दूध जैसा तरल पदार्थ आने यानी गैलेक्टोरिया (galactorrhea) होने पर
  • थायरॉयड समस्या के संकेत दिखाई देने पर
  • अचानक वजन बढ़ने या घटने पर
  • मूड स्विंग्स या तनाव/डिप्रेशन के लक्षण दिखाई देने पर

इनमें से कोई भी लक्षण हो, तो IVF शुरू करने से पहले प्रोलैक्टिन टेस्ट कराना बेहतर होता है।

प्रोलैक्टिन लेवल असामान्य होने पर उपचार (Treatment for Abnormal Prolactin Levels)

अगर प्रोलैक्टिन लेवल बहुत ज़्यादा हो, तो IVF की सक्सेस रेट कम हो सकती है। प्रोलैक्टिन लेवल नॉर्मल न होने पर ट्रीटमेंट उसके कारणों के आधार पर किया जाता है।

  • दवाएँ (Medicines): प्रोलैक्टिन कम करने के लिए डॉक्टर कुछ दवाईयाँ देते हैं जो सीधे पिट्यूटरी ग्लैंड पर असर डालकर प्रोलैक्टिन को कंट्रोल करती हैं।
  • थायरॉयड (thyroid) का इलाज: अगर हाइपोथाइरॉयडिज़्म हो, तो थायरॉयड का इलाज शुरू होते ही प्रोलैक्टिन लेवल अक्सर अपने-आप नॉर्मल होने लगता है।
  • पिट्यूटरी ग्लैंड का इलाज: अगर प्रोलैक्टिन बढ़ने की वजह पिट्यूटरी ट्यूमर यानी प्रोलैक्टिनोमा (prolactinoma) हो, तो दवाओं से इसका ट्रीटमेंट किया जाता है और बहुत कम मामलों में ही सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
  • तनाव कम करने की सलाह: योग, मेडिटेशन, डीप ब्रीथिंग, और अच्छी नींद प्रोलैक्टिन को नैचुरली कंट्रोल करने में मदद करती हैं।
  • लाइफस्टाइल सुधार: संतुलित डाइट, कम कैफीन, स्मोकिंग से दूरी और रेगुलर एक्सरसाइज़ से प्रोलैक्टिन लेवल को नॉर्मल किया जा सकता है।
  • हार्मोन मॉनिटरिंग: IVF शुरू करने से पहले और प्रक्रिया के दौरान नियमित प्रोलैक्टिन टेस्ट करवाए जाते हैं, ताकि दवाओं का असर और हार्मोनल बैलेंस दोनों ट्रैक किए जा सकें।

अधिकतर मामलों में दवाओं और लाइफस्टाइल सुधार से प्रोलैक्टिन पूरी तरह कंट्रोल हो जाता है।

प्रोलैक्टिन नार्मल होने के बाद IVF सफलता (Success in IVF After Managing Prolactin)

जब प्रोलैक्टिन लेवल नॉर्मल हो जाता है, तो IVF की सक्सेस रेट काफी बढ़ जाती है। इसकी वजहें निम्नलिखित हैं।

  • एग क्वालिटी अच्छी हो जाती है
  • फर्टिलाइज़ेशन रेट (fertilization rate) बढ़ जाता है
  • एम्ब्रीओ की इम्प्लांटेशन क्षमता मजबूत हो जाती है
  • मिसकैरेज होने का रिस्क कम हो जाता है

संतुलित प्रोलैक्टिन स्टिम्युलेशन से लेकर healthy pregnancy तक, IVF की पूरी जर्नी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसीलिए इसे कंट्रोल करना जरुरी होता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

IVF की सफलता में प्रोलैक्टिन टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण है। अगर यह हार्मोन असामान्य हो, तो एग डेवलपमेंट, ओव्यूलेशन और इम्प्लांटेशन सभी प्रभावित हो सकते हैं। सही समय पर टेस्ट, सही इलाज और नियमित मॉनिटरिंग से IVF के रिज़ल्ट काफी बेहतर हो जाते हैं। IVF प्लान करते समय फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से प्रोलैक्टिन टेस्ट के बारे में जरूर बात करें।

IVF में प्रोलैक्टिन टेस्ट से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

प्रोलैक्टिन बढ़ने से क्या होता है?

 

प्रोलैक्टिन बढ़ने पर पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं, ओव्यूलेशन रुक सकता है और गर्भधारण में दिक्कत आती है। IVF में भी एग और इम्प्लांटेशन पर असर पड़ सकता है।

प्रेगनेंसी के लिए प्रोलैक्टिन कितना होना चाहिए?

 

बिना गर्भ के महिलाओं में लगभग 10–25 ng/mL सामान्य माना जाता है। IVF शुरू करने से पहले डॉक्टर इस रेंज को कंफर्म करते हैं।

प्रोलैक्टिन की कमी से कौन सा रोग होता है?

 

प्रोलैक्टिन की कमी से दूध कम बनता है और हॉर्मोनल असंतुलन हो सकता है।

महिलाओं में प्रोलैक्टिन अधिक होने पर क्या होता है?

 

हाई प्रोलैक्टिन से ओव्यूलेशन रुक सकता है, पीरियड्स बंद हो सकते हैं, गैलेक्टोरिया (galactorrhea) हो सकता है जिससे IVF फेल होने का रिस्क बढ़ जाता है।

क्या हाई प्रोलैक्टिन प्रेगनेंसी के लिए खराब है?

 

हाँ, बहुत ज़्यादा प्रोलैक्टिन एग क्वालिटी और इम्प्लांटेशन को प्रभावित करता है। सही इलाज के बाद प्रेगनेंसी चांस बढ़ जाते हैं।

प्रोलैक्टिन लेवल कैसे कम करें?

 

डॉक्टर की दी हुयी दवाइयाँ, थायरॉयड इलाज, स्ट्रैस कंट्रोल, अच्छी नींद और लाइफस्टाइल में सुधार से प्रोलैक्टिन कम किया जा सकता है।

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