आईवीएफ यानी इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (in-vitro fertilization) शुरू करने से पहले कई जरूरी हार्मोन टेस्ट करवाए जाते हैं। इन्हीं में से एक प्रोलैक्टिन (prolactin) टेस्ट एक महत्वपूर्ण हार्मोन टेस्ट है, जो महिलाओं के पीरियड्स, ओव्यूलेशन (ovulation) और प्रेगनेंसी की क्षमता पर असर डालता है। अगर प्रोलैक्टिन असामान्य हो जाए (कम हो या ज़्यादा) तो उसकी वजह से एग डेवलपमेंट, प्रजनन क्षमता और IVF के रिज़ल्ट पर असर पड़ सकता है। इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि प्रोलैक्टिन क्या है, IVF से पहले यह टेस्ट क्यों करवाया जाता है, और इसके नॉर्मल होने से IVF की सफलता कितनी बढ़ जाती है।
प्रोलैक्टिन एक हार्मोन है जिसे पिट्यूटरी ग्लैंड (pituitary gland) बनाती है। यह ग्लैंड दिमाग के ठीक नीचे होती है और शरीर के कई हार्मोनल फ़ंक्शन्स को कंट्रोल करती है।
महिलाओं में प्रोलैक्टिन का मुख्य काम स्तन में दूध बनाना और प्रेगनेंसी के दौरान ब्रैस्ट टिश्यू को तैयार करना होता है। लेकिन इसके अलावा यह हॉर्मोन पीरियड्स के साइकिल, ओव्यूलेशन और फर्टिलिटी पर भी असर डालता है।
अगर प्रोलैक्टिन बहुत ज़्यादा बढ़ जाए, तो ओव्यूलेशन रुक सकता है, पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं और IVF में एग परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है।
IVF शुरू करने से पहले प्रोलैक्टिन का लेवल बिल्कुल नॉर्मल होना चाहिए, क्योंकि IVF की पूरी प्रक्रिया ही हार्मोनल स्टिम्युलेशन (stimulation) पर आधारित होती है। प्रोलैक्टिन असामान्य होने पर IVF का रिजल्ट प्रभावित हो सकता है।
इन कारणों की वजह से डॉक्टर IVF शुरू करने से पहले प्रोलैक्टिन टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं।
IVF का हर स्टेप, ओवेरियन स्टिम्युलेशन से लेकर एग रिट्रीवल, फर्टिलाइज़ेशन और एम्ब्रियो ट्रांसफर तक, हार्मोन बैलेंस पर निर्भर करता है।
अगर प्रोलैक्टिन बढ़ा हुआ हो, तो IVF की सफलता दर यानी सक्सेस रेट (success rate) पर सीधा असर पड़ सकता है।
इसी वजह से प्रोलैक्टिन टेस्ट को IVF में एक जरुरी हॉर्मोनल टेस्ट माना जाता है।
कुछ स्थितियों में प्रोलैक्टिन टेस्ट करवाना ज़रूरी होता है, खासकर जब आप IVF प्लान कर रहे हों तब।
इनमें से कोई भी लक्षण हो, तो IVF शुरू करने से पहले प्रोलैक्टिन टेस्ट कराना बेहतर होता है।
अगर प्रोलैक्टिन लेवल बहुत ज़्यादा हो, तो IVF की सक्सेस रेट कम हो सकती है। प्रोलैक्टिन लेवल नॉर्मल न होने पर ट्रीटमेंट उसके कारणों के आधार पर किया जाता है।
अधिकतर मामलों में दवाओं और लाइफस्टाइल सुधार से प्रोलैक्टिन पूरी तरह कंट्रोल हो जाता है।
जब प्रोलैक्टिन लेवल नॉर्मल हो जाता है, तो IVF की सक्सेस रेट काफी बढ़ जाती है। इसकी वजहें निम्नलिखित हैं।
संतुलित प्रोलैक्टिन स्टिम्युलेशन से लेकर healthy pregnancy तक, IVF की पूरी जर्नी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसीलिए इसे कंट्रोल करना जरुरी होता है।
IVF की सफलता में प्रोलैक्टिन टेस्ट बहुत महत्वपूर्ण है। अगर यह हार्मोन असामान्य हो, तो एग डेवलपमेंट, ओव्यूलेशन और इम्प्लांटेशन सभी प्रभावित हो सकते हैं। सही समय पर टेस्ट, सही इलाज और नियमित मॉनिटरिंग से IVF के रिज़ल्ट काफी बेहतर हो जाते हैं। IVF प्लान करते समय फर्टिलिटी स्पेशलिस्ट से प्रोलैक्टिन टेस्ट के बारे में जरूर बात करें।
प्रोलैक्टिन बढ़ने पर पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं, ओव्यूलेशन रुक सकता है और गर्भधारण में दिक्कत आती है। IVF में भी एग और इम्प्लांटेशन पर असर पड़ सकता है।
बिना गर्भ के महिलाओं में लगभग 10–25 ng/mL सामान्य माना जाता है। IVF शुरू करने से पहले डॉक्टर इस रेंज को कंफर्म करते हैं।
प्रोलैक्टिन की कमी से दूध कम बनता है और हॉर्मोनल असंतुलन हो सकता है।
हाई प्रोलैक्टिन से ओव्यूलेशन रुक सकता है, पीरियड्स बंद हो सकते हैं, गैलेक्टोरिया (galactorrhea) हो सकता है जिससे IVF फेल होने का रिस्क बढ़ जाता है।
हाँ, बहुत ज़्यादा प्रोलैक्टिन एग क्वालिटी और इम्प्लांटेशन को प्रभावित करता है। सही इलाज के बाद प्रेगनेंसी चांस बढ़ जाते हैं।
डॉक्टर की दी हुयी दवाइयाँ, थायरॉयड इलाज, स्ट्रैस कंट्रोल, अच्छी नींद और लाइफस्टाइल में सुधार से प्रोलैक्टिन कम किया जा सकता है।