जब महिला के शरीर में मेनोपॉज़ से कुछ वर्ष पहले हॉर्मोनल बदलाव शुरू हो जाते हैं तब उसे पेरिमेनोपॉज़ (Perimenopause) कहा जाता है। आमतौर पर पेरिमेनोपॉज़ 40 से 45 साल की उम्र के आसपास दिखाई देने लगती है, लेकिन कई महिलाओं में यह इससे थोड़ा पहले या बाद में भी शुरू हो सकती है। इस दौरान एस्ट्रोजन (Estrogen) और प्रोजेस्टेरोन (Progesterone) हार्मोन का उतार-चढ़ाव बढ़ जाता है, जिसकी वजह से पीरियड्स अनियमित होने लगते हैं और शरीर में कई तरह के बदलाव महसूस होने लगते हैं। पेरिमेनोपॉज़ महिला की फर्टिलिटी (fertility) पर भी प्रभाव डालता है, क्योंकि इस समय ओव्यूलेशन रेगुलर नहीं होता। यह बदलाव पूरी तरह नेचुरल हैं और हर महिला इन्हें अलग-अलग मात्रा में महसूस करती है।
अब समझते हैं Perimenopause meaning in Hindi तो यह मेनोपॉज़ से पहले की अवस्था है, जब महिला का शरीर धीरे-धीरे उस अवस्था की ओर बढ़ रहा होता है जहाँ पीरियड्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं।
इस दौरान हॉर्मोनल असंतुलन, विशेषकर एस्ट्रोजन की कमी, शरीर के कई कार्यों यानी बॉडी फंक्शन्स को प्रभावित करने लगता है जैसे मेंस्ट्रुअल साइकिल (menstrual cycle ), नींद, मूड, हड्डियों की मज़बूती (bone health) और एनर्जी लेवल शामिल हैं।
पेरिमेनोपॉज़ कोई बीमारी नहीं है, बल्कि एक बिल्कुल प्राकृतिक जैविक बदलाव (बायोलॉजिकल चेंज) है, जो हर महिला के जीवन में आता है।
पीरियड्स पहले की तुलना में कम या ज़्यादा आ सकते हैं, बीच-बीच में लंबा गैप हो सकता है, या फ्लो में भी बदलाव हो सकता है।
पेरिमेनोपॉज़ के लक्षण हर महिला में अलग तरीके से दिखाई देते हैं। नीचे वह सबसे आम लक्षण दिए गए हैं:
ये सभी लक्षण समय के साथ बदलते रहते हैं। कुछ महिलाओं में इनमें से सिर्फ 2–3 लक्षण होते हैं, जबकि कुछ में लगभग सभी।
पेरिमेनोपॉज़ का मुख्य कारण हॉर्मोनल उतार-चढ़ाव है, विशेषकर एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन की कमी। उम्र बढ़ने के साथ ओवरीज़ (ovaries) की क्षमता कम होती जाती है, जिससे ये हार्मोन नियमित मात्रा (रेगुलर क्वांटिटी) में नहीं बनते।
नीचे पेरिमेनोपॉज़ के प्रमुख कारण दिए गए हैं:
पेरिमेनोपॉज़ की समय-सीमा और गंभीरता (severity) हर महिला में अलग होती है।
पेरिमेनोपॉज़ सिर्फ पीरियड्स को प्रभावित नहीं करता, बल्कि पूरे शरीर पर इसका असर दिखाई देता है। हॉर्मोनल बदलाव कई महत्वपूर्ण बॉडी सिस्टम जैसे हड्डियाँ, हृदय, नींद और मानसिक स्वास्थ्य यानी मेंटल हैल्थ पर भी प्रभाव डालते हैं। नीचे इस दौरान होने वाले कुछ आम प्रभाव दिए गए हैं:
इन बदलावों को समय पर पहचान कर सही देखभाल की जाए तो आने वाले समय में स्वास्थ्य को सही रखा जा सकता है।
पेरिमेनोपॉज़ के दौरान सही लाइफस्टाइल अपनाने से इसके लक्षण काफी हद तक मैनेज किए जा सकते हैं। इसके लिए निम्नलिखित काम करें:
लाइफस्टाइल में छोटे छोटे बदलाव इस कंडीशन में काफी आराम पहुँचा बना सकते हैं।
पेरिमेनोपॉज़ में ओव्यूलेशन नियमित नहीं होता, और एग क्वालिटी भी उम्र के साथ प्रभावित होती है इस वजह से नेचुरल प्रेगनेंसी की संभावना कम हो जाती है। नीचे वे बदलाव दिए गए हैं जो फर्टिलिटी को प्रभावित करते हैं:
IVF, ICSI या डोनर एग प्रोग्राम जैसी टेक्नोलॉजी पेरिमेनोपॉज़ में भी प्रेगनेंसी संभव कर माँ बनने का अवसर प्रदान कर सकती हैं।
पेरिमेनोपॉज़ महिला के जीवन का एक महत्वपूर्ण बायोलॉजिकल फेज है, जहाँ शरीर मेनोपॉज़ की ओर बढ़ रहा होता है। इस दौरान हार्मोनल बदलाव कई शारीरिक और मानसिक लक्षण पैदा कर सकते हैं, इसलिए उन्हें सही समय पर पहचानना और प्रबंधित करना ज़रूरी है।
सही आहार, नियमित व्यायाम, तनाव नियंत्रण और मेडिकल परामर्श से इस चरण को आरामदायक और स्वस्थ बनाया जा सकता है।
हाँ, लेकिन संभावना कम होती है क्योंकि ओव्यूलेशन अनियमित होता है।
हड्डियाँ कमजोर होना, नींद की दिक्कत, हार्ट से संबंधित रिस्क।
हर महिला में अलग होता है किसी में जल्दी, किसी में देर से आ सकते हैं।
बहुत मीठा, अधिक तला हुआ, बहुत ज्यादा कैफीन या अल्कोहल।
आमतौर पर 45–52 वर्ष के बीच मेनोपॉज़ होता है।