समय के साथ हमारी प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं में बदलाव आया है इसका कारण हमारी बदलती लाफइस्टाइल भी है। जीवनशैली में बड़े परिवर्तन के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है इनमें निःसंतानता भी एक है। आज देश में संतान की चाह रखने वाले लगभग 10 से 15 प्रतिशत दम्पतियों को निःसंतानता का सामना करना पड़ रहा है। निःसंतानता से प्रभावित दम्पतियों के लिए आईवीएफ तकनीक कारगर साबित हो रही है दुनियाभर में आईवीएफ प्रक्रिया का उपयोग करके लाखों दम्पती संतान सुख प्राप्त कर चुके हैं। 1978 में आईवीएफ तकनीक का आविष्कार ब्लॉक ट्यूब में गर्भधारण करवाने के लिए किया गया था, समय के साथ इसमें नये - नये आविष्कार होते गये और ये तकनीक अन्य निःसंतानता संबंधी समस्याओं में काम आने लगी। अक्सर दम्पती ये जानना चाहते हैं कि आईवीएफ का मतलब क्या होता है
आईवीएफ का अर्थ (IVF Meaning in hindi) - आईवीएफ यानि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, इसे आम बोलचाल में टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहते हैं। ये प्राकृतिक रूप से गर्भधारण में विफल दम्पतियों के लिए गर्भधारण का सफल माध्यम बन सकता है।आईवीएफ में क्या होता है - इसमें महिला के शरीर में होने वाली निषेचन की प्रक्रिया (महिला के अण्डे व पुरूष के शुक्राणु का मिलन) को बाहर लैब में किया जाता है। लैब में बने भ्रूण को महिला के गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है।
1. अण्डों की संख्या बढ़ाना – प्राकृतिक रूप से महिला की ओवरी में हर महीने अण्डे तो ज्यादा बनते हैं लेकिन हर महीने एक ही अण्डा बड़ा होता है जबकि आईवीएफ प्रोसिजर में सभी अण्डे बड़े करने के लिए महिला को दवाइयां और इंजेक्शन दिये जाते हैं । इस प्रक्रिया के दौरान अण्डों के विकास को देखने के लिए अल्ट्रासाउण्ड के माध्यम से महिला की जांच की जाती है। आईवीएफ प्रक्रिया में सामान्य से ज्यादा अण्डे इसलिए बनाए जाते हैं ताकि उनसे ज्यादा भ्रूण बनाए जा सकें और इन भ्रूणों में सबसे अच्छे भ्रूण को गर्भाशय में स्थानान्तरित किया जा सके।
2. अण्डे शरीर से बाहर निकालना - अण्डे बनने और परिपक्व होने के बाद अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में एक पतली सुई की मदद से अण्डे टेस्ट ट्यूब में एकत्रित किए जाते हैं जिन्हें लैब में रख दिये जाते हैं। अण्डे निकालने के कुछ घंटों बाद महिला अपने घर जा सकती है।
3. अण्डा फर्टिलाइजेशन - महिला के अण्डे निषेचित करवाने के लिए मेल पार्टनर के सीमन का सेम्पल लेकर अच्छे शुक्राणु अलग किए जाते हैं। लैब में महिला के अण्डों के सामने पुरूष के शुक्राणुओं को छोड़ा जाता है। शुक्राणु अण्डे में प्रवेश कर जाता है और फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। आईवीएफ में महिला की ट्यूब में होने वाले काम को लैब में किया जाता है। आईवीएफ महिला निःसंतानता की समस्याओं में लाभदायक होने के साथ - साथ पुरूष जिनके शुक्राणुओं की मात्रा 5 से 10 मीलियन प्रति एम एल है उनके लिए फायदेमंद है।
4. भ्रूण का विकास - एम्ब्रियोलॉजिस्ट इन्क्यूबेटर में विभाजित हो रहे भ्रूण को अपनी निगरानी में रखते हैं। 2-3 दिन बाद ये अण्डा 6 से 8 सेल के भ्रूण में बदल जाता है। एम्ब्रियोलॉजिस्ट इन भ्रूण में से श्रेष्ठ 1-2 भ्रूणों का स्थानान्तरण के लिए चयन करते हैं। कई मरीजों में भ्रूणों को 5-6 दिन लैब में विकसित करके ब्लास्टोसिस्ट बना लिया जाता है इसके बाद स्थानान्तरण किया जाता हे। इसमें सफलता की संभावना ज्यादा होती है।
5. भ्रूण ट्रांसफर - आईवीएफ प्रक्रिया के माध्यम से बने भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1-2 अच्छे भ्रूण का एम्ब्रियोलॉजिस्ट चयन करते हैं और उन्हें भ्रूण ट्रांसफर केथेटर में लेते हैं। डॉक्टर एक पतली नली के जरिए भ्रूण को बड़ी सावधानी से अल्ट्रासाउण्ड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में स्थानान्तरित कर देते हैं। भ्रूण स्थानान्तरण की प्रक्रिया में दर्द नहीं होता और महिला को बेड रेस्ट की जरूरत नहीं होती है । भ्रूण ट्रांसफर के बाद सारी प्रक्रिया प्राकृतिक गर्भधारण के समान ही होती है, भ्रूण जन्म तक माँ के गर्भ में ही बड़ा होता है।
निःसंतानता से प्रभावित दम्पतियों के लिए एआरटी उपचार प्रक्रिया उम्मीद की किरण है। समय के साथ इसमें नये आविष्कार हो रहे हैं जिससे सफलता दर बढ़ती जा रही है। इक्सी, क्लोज़्ड वर्किंग चैम्बर, लेजर असिस्टेड हेचिंग, ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, एम्ब्रियो मॉनिटरिंग सिस्टम, इम्सी इत्यादि इसकी सफलता बढ़ाने वाले आविष्कार हैं।