वैरिकोसील अंडकोष (टेस्टिकल्स) की नसों में सूजन या फैलाव को कहते हैं। इसे आसान भाषा में समझें तो जैसे पैरों में वैरिकोज वेन्स (त्वचा की सतह के नीचे सूजी, मुड़ी हुई और नीली या बैंगनी रंग की नसें) बन जाती हैं, वैसे ही वेन्स टेस्टिकल्स के आसपास भी बन जाती है। टेस्टिकल्स के आसपास कई नसें होती हैं, जो सामान्य रूप से खून को ऊपर की ओर ले जाती हैं। जब इन नसों में मौजूद छोटे वाल्व ठीक से काम नहीं करते, तो टेस्टिकल्स के आसपास इन नसों में खून जमा होने लगता है और ये फूल जाती हैं। यह स्थिति वैरिकोसील (varicocele meaning in hindi) कहलाती है। यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती है और कई बार स्पर्म क्वालिटी को भी प्रभावित करती है, इसका असर मेल फर्टिलिटी (पुरुष प्रजनन क्षमता) पर पड़ सकता है। आइये समझते हैं कि varicocele kya hota hai, इसके कारण, लक्षण, जांच और उपचार क्या हैं।
वैरिकोसील को गंभीरता के आधार पर तीन प्रकारों में बाँटा जाता है। डॉक्टर इसे “ग्रेडिंग सिस्टम” के द्वारा पहचानते हैं ताकि यह पता चले कि समस्या कितनी हल्की या कितनी गंभीर है। यह जानकारी सही इलाज चुनने में मदद करती है।
ग्रेडिंग से यह समझ आता है कि आगे की जांच और उपचार की कितनी जरुरत है।
वैरिकोसील बनने की प्रक्रिया बहुत सामान्य है। अंडकोष की नसों में छोटे-छोटे वाल्व होते हैं जो खून को एक ही दिशा में ऊपर की ओर बहने देते हैं। जब ये वाल्व खराब हो जाते हैं, तो खून वापस नीचे आ जाता है और नसों में भर जाता है। इससे नसें फूल कर मोटी दिखाई देने लगती हैं।
मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
अधिकांश पुरुष शुरुआत में लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं, क्योंकि यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ती है। लेकिन कुछ संकेत स्पष्ट होते हैं:
वैरिकोसील का सीधे स्पर्म प्रोडक्शन पर असर पड़ता है। जब नसें फूल जाती हैं, तो टेस्टिकल्स का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। स्पर्म कम तापमान पर अच्छी तरह बनते हैं, इसलिए तापमान बढ़ने से:
इस कारण बहुत से पुरुषों में निःसंतानता का एक बड़ा कारण वैरिकोसील पाया जाता है।
वैरिकोसील का इलाज उसकी गंभीरता, लक्षण और फ़र्टिलिटी रिपोर्ट के आधार पर किया जाता है। सभी मरीजों में सर्जरी की जरूरत नहीं होती। कई मामलों में सिर्फ ऑब्ज़र्वेशन काफी होता है।
वैरिकोसील एक आम समस्या है। यह दर्द और असुविधा के साथ-साथ पुरुष प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है, इसलिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। विशेषज्ञ की सलाह लेकर उचित उपचार करवाने से स्पर्म क्वालिटी में सुधार आता है और निःसंतानता का जोख़िम कम हो जाता है।
वैरिकोसील आमतौर पर किशोरावस्था या युवावस्था में पहचाना जाता है, लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है।
हाँ। वैरिकोसील स्पर्म काउंट और स्पर्म क्वालिटी को प्रभावित करता है, जिससे गर्भधारण की संभावना कम हो सकती है।
नहीं। हल्के केसों में ऑब्जरवेशन से काम चल जाता है, लेकिन मॉडरेट और गंभीर केसों में सर्जरी सबसे प्रभावी विकल्प है।
कुछ मामलों में दुबारा हो सकता है, लेकिन माइक्रोसर्जिकल तकनीक में यह जोखिम बहुत कम होता है।
सबसे पहले सीमेन एनालिसिस किया जाता है जिसमें स्पर्म काउंट, मोबिलिटी और आकार की जांच होती है।
WHO के अनुसार 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर या उससे अधिक स्पर्म काउंट सामान्य माना जाता है।
जिंक, एंटीऑक्सीडेंट युक्त संतुलित भोजन, नियमित व्यायाम, तनाव नियंत्रण और धूम्रपान-शराब से दूरी स्पर्म हेल्थ में सुधार लाते हैं।