अशुक्राणुता या निल स्पर्म (nil sperm), जिसे एज़ूस्पर्मिआ (Azoospermia) के नाम से भी जाना जाता है, पुरुष निःसंतानता का एक गंभीर रूप है। एजुस्पर्मिया में वीर्य (सीमेन) में शुक्राणुओं (स्पर्म) की की संख्या शून्य होती है। एक स्टडी के अनुसार, भारत में निःसंतान पुरुषों में लगभग 40% पुरुष अशुक्राणुता (निल स्पर्म) पायी जाती है। मॉडर्न मेडिकल साइंस की सहायता से एजुस्पर्मिया से पीड़ित पुरुषों को भी पिता बनने का अवसर प्राप्त हो सकता है।
एज़ूस्पर्मिआ में वीर्य परीक्षण (सीमेन एनालिसिस) के दौरान एक भी सक्रिय या निष्क्रिय शुक्राणु नहीं पाया जाता। सामान्य रूप से अंडकोष (टेस्टिकल्स) के भीतर शुक्राणु लगातार बनते रहते हैं और वास डेफरेंस (vas deferens) नाम की नली से होते हुये ये शुक्राणु वीर्य में शामिल हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की रुकावट या स्पर्म प्रोडक्शन में कमी होने पर अशुक्राणुता (निल स्पर्म) की स्थिति पैदा हो जाती है। यह समझना जरुरी है कि एज़ूस्पर्मिआ स्थायी निःसंतानता या परमानेंट स्टर्लिटी नहीं है, क्योंकि कई मामलों में अंडकोष के भीतर सीमित मात्रा में स्पर्म मौजूद रहते हैं, जिन्हें मॉडर्न मेडिकल साइंस की मदद से बाहर निकाला जा सकता है।
निल स्पर्म को मुख्यतः दो कैटेगरी में बांटा जाता है, जिनके कारण और ट्रीटमेंट के तरीके अलग अलग होते हैं।
इस स्थिति में, अंडकोष सामान्य रूप से स्पर्म बनाते हैं, परंतु प्रजनन मार्ग जैसे एपिडिडिमिस, वास डेफरेंस या इजेकुलेटरी डक्ट में अवरोध के कारण स्पर्म सीमेन तक नहीं पहुंच पाते। यह अवरोध जन्मजात हो सकता है अथवा किसी इन्फेक्शन, सर्जरी या चोट के कारण बाद में भी उत्पन्न हो सकता है। एक स्टडी के अनुसार, ऑब्सट्रक्टिव एज़ूस्पर्मिआ के सबसे सामान्य कारणों में जननांग संक्रमण (जेनिटल इन्फेक्शन) की हिस्ट्री होना प्रमुख पाया गया है। इस प्रकार की एज़ूस्पर्मिआ में सर्जिकल ट्रीटमेंट से स्पर्म बाहर निकाले जाते हैं।
इस प्रकार की अशुक्राणुता में अंडकोष में स्पर्म ही नहीं बनते । नॉन ऑब्सट्रक्टिव एज़ूस्पर्मिआ हार्मोनल असंतुलन (FSH, LH का असंतुलन), आनुवंशिक विकार या जेनेटिक डिसऑर्डर (genetic disorder), विकिरण चिकित्सा या रेडिएशन ट्रीटमेंट (radiation treatment) अथवा अज्ञात कारणों से भी हो सकती है। इस प्रकार की एज़ूस्पर्मिआ में माइक्रोसर्जिकल टेस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन (Micro-TESE) जैसी एडवांस तकनीक से इलाज किया जाता है।
अशुक्राणुता या एज़ूस्पर्मिआ के लक्षण प्रायः स्पष्ट नहीं होते। अधिकांश पुरुषों को इस समस्या के बारे में तब पता चलता है जब संतान पैदा करने में कठिनाई आती है। लेकिन, कुछ संकेत और लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं
एज़ूस्पर्मिआ की बहुत सी वजहें हो सकती हैं, जिनमें से कुछ कारण निम्न हैं।
एज़ूस्पर्मिआ की पुष्टि और कारणों की पहचान नीचे दी गयी जाँचों के माध्यम से होती है।
एज़ूस्पर्मिआ का इलाज (Azoospermia ka ilaj ) इसके प्रकार और वजहों (causes) पर निर्भर करता है। निल स्पर्म का इलाज मेडिसिन, सर्जरी और असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) से किया जा सकता है।
दवाओं से इलाज़: हार्मोनल असंतुलन की वजह से होने वाले एज़ूस्पर्मिआ में दवाई कारगर हो सकती है। हाइपोगोनाडो ट्रोपिक हाइपोगोनाडिज़्म वाले रोगियों को बाहर से गोनाडोट्रोपिन या गोनाडोट्रोपिन रिलीजिंग हार्मोन दिया जाता है, जिससे स्पर्म प्रोडक्शन में सुधार हो सकता है। इसके अलावा डॉक्टर्स टेस्टोस्टेरोन बढ़ाने वाली दवाइयाँ भी दे सकते हैं।
सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल (surgical sperm retrieval):ऑब्सट्रक्टिव एज़ूस्पर्मिआ में टेस्टिकल्स या एपिडिडिमिस से सीधे स्पर्म निकाल लिये जाते हैं।
IVF/ICSI विकल्प: जब अंडकोष से स्पर्म सफलतापूर्वक प्राप्त हो जाते हैं, तो इंट्रासाइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (ICSI) के माध्यम से एक स्पर्म को सीधे अंडाणु या ओवम (एग ) में इंजेक्ट किया जाता है। मेडिकल स्टडी के रिकॉर्ड के अनुसार इस तरीके से एम्ब्रीओ बनने की सक्सेस रेट लगभग 87% होती है
लाइफस्टाइल में सुधार: धूम्रपान और शराब का (स्मोकिंग एंड अल्कोहल) से परहेज़, स्वस्थ आहार (हैल्थी डाइट), नियमित व्यायाम (रेगुलर एक्सरसाइज़), स्ट्रैस में कमी, और अत्यधिक गर्मी के संपर्क से बचाव जैसे जीवनशैली परिवर्तन (लाइफस्टाइल चेंज) प्रजनन स्वास्थ्य (फ़र्टिलिटी हैल्थ) को सुधारने में सहायक हो सकते हैं।
एज़ूस्पर्मिआ पुरुष प्रजनन क्षमता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। स्पर्म के अभाव में गर्भधारण स्वाभाविक रूप से संभव नहीं होता। हालांकि, ART तकनीकों के माध्यम से गर्भधारण की संभावना बढ़ाई जा सकती है।
एज़ूस्पर्मिआ पुरुष निःसंतानता का एक महत्वपूर्ण कारण है। समय पर पहचान, जांच और उपयुक्त इलाज़ से इसे ठीक किया जा सकता है ।
एज़ूस्पर्मिआ में गर्भधारण प्राकृतिक रूप से संभव नहीं होता, इसलिए ICSI के साथ IVF द्वारा अंडकोष से प्राप्त शुक्राणुओं का उपयोग कर भ्रूण बनाया जाता है।
हार्मोनल कारणों में लाइफस्टाइल में सुधार मदद कर सकता है, पर ऑब्सट्रक्टिव या जेनेटिक कारणों में मेडिकल इलाज ही जरुरी होता है।
यह उसके कारण पर निर्भर करता है; हार्मोनल कमी या ऑब्सट्रक्टिव एज़ूस्पर्मिआ में सुधार संभव है, जबकि जेनेटिक कारणों में ART तकनीकें मुख्य विकल्प होती हैं।
स्पर्म गुणवत्ता का मूल्यांकन वीर्य विश्लेषण (सीमेन एनालिसिस) द्वारा किया जाता है.
स्मोकिंग से परहेज़, संतुलित आहार, स्ट्रेस मैनेजमेंट सही वजन करने से सीमित सुधार संभव है, पर गंभीर कारणों में यह पर्याप्त नहीं होता।
ICSI तकनीक द्वारा अंडकोष से प्राप्त शुक्राणुओं का उपयोग किया जा सकता है; पूर्ण अभाव की स्थिति में डोनर स्पर्म की सहायता ली जा सकती है।