बीटा hCG टेस्ट गर्भधारण की पुष्टि (प्रेगनेंसी कन्फर्मेशन) करने के लिए सबसे भरोसेमंद टेस्ट होता है । यह टेस्ट खास तौर पर तब किया जाता है जब किसी महिला ने IVF या IUI जैसी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट की मदद से गर्भधारण किया हो। बीटा hCG यानी Human Chorionic Gonadotropin (ह्यूमन कोरिओनिक गोनाडोट्रोपिन ) नाम का एक ऐसा हार्मोन है जो गर्भ ठहरने के बाद बनता है। इस हार्मोन का स्तर शरीर में बढ़ना इस बात का संकेत है कि भ्रूण गर्भाशय में इम्प्लांट (implant) हो चुका है और प्रेगनेंसी शुरू हो गई है। IVF के बाद बीटा hCG टेस्ट डॉक्टर को यह समझने में मदद करता है कि एम्ब्रीओ गर्भाशय में सफलतापूर्वक जुड़ा है या नहीं।
बीटा hCG एक प्रेगनेंसी हार्मोन है जो गर्भाशय में भ्रूण के ठहरने के कुछ दिनों बाद बनने लगता है। यह हार्मोन प्लेसेंटा की कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है और इसका मुख्य काम होता है पहले ट्राइमेस्टर में गर्भ को (अर्ली प्रेगनेंसी सपोर्ट) करना । गर्भावस्था में hCG हार्मोन का काम महिला के शरीर को पीरियड्स रोकने का सिग्नल देना और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन बनाते रहना है जो गर्भाशय की परत (यूटेरिन लाइनिंग) को एम्ब्रीओ मतलब भ्रूण के इम्प्लांटेशन और प्रेगनेंसी के लिए तैयार करता है । जब निषेचित अंडा (एम्ब्रीओ) गर्भाशय की दीवार पर लग जाता है (इम्प्लांट हो जाता है), तभी महिला का शरीर hCG हार्मोन बनाना शुरू करता है। यही कारण है कि गर्भधारण के शुरुआती संकेत के रूप में बीटा hCG टेस्ट सबसे सटीक माना जाता है।
बीटा hCG को दो तरीकों से मापा जा सकता है; ब्लड टेस्ट और यूरिन टेस्ट से।
यह टेस्ट खून के नमूने से किया जाता है और बहुत सटीक परिणाम देता है। इसमें यह भी पता चलता है कि शरीर में hCG हार्मोन की मात्रा कितनी है।
IVF के बाद यही टेस्ट (क्वांटिटेटिव बीटा hCG टेस्ट) सबसे ज्यादा किया जाता है, क्योंकि इसके ज़रिए प्रेगनेंसी के शुरुआती विकास को बारीकी से मॉनिटर किया जा सकता है।
यह घर पर किया जा सकता है, लेकिन शुरुआती चरण में कभी-कभी गलत परिणाम दे सकता है।
इसलिए IVF या मेडिकल कंफर्मेशन के लिए हमेशा ब्लड टेस्ट को प्राथमिकता दी जाती है।
सामान्य गर्भावस्था में hCG हार्मोन हर 48 से 72 घंटे में लगभग दोगुना होता है। यानी अगर आज इसका स्तर 100 mIU/ml है, तो दो दिन बाद यह 200 के आसपास होना चाहिए।
hCG का यह “डबलिंग पैटर्न” प्रेगनेंसी की सेहत का संकेत देता है। गर्भ के पहले 8 से 10 हफ़्तों में इसका स्तर सबसे ज्यादा बढ़ता है और फिर धीरे-धीरे स्थिर हो जाता है।
यह हार्मोन भ्रूण को गर्भाशय में बनाए रखने में मदद करता है और प्लेसेंटा के विकास को भी बढ़ाता है।
प्राकृतिक गर्भधारण में hCG का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता है। महिला को इसका पता अक्सर तब चलता है जब पीरियड्स रुक जाते हैं। वहीं IVF प्रेगनेंसी में hCG (ivf pregnancy mein hcg) को बारीकी से मॉनिटर किया जाता है। IVF के बाद भ्रूण को गर्भाशय में ट्रांसफर किया जाता है, इसलिए डॉक्टर आमतौर पर ट्रांसफर के 12–14 दिन बाद बीटा hCG टेस्ट करवाते हैं।
अगर इस समय रिपोर्ट में hCG स्तर 50 mIU/ml या उससे अधिक आता है, तो इसका मतलब होता है कि गर्भधारण शुरू हो गया है।
IVF में हर 2–3 दिन पर इसका स्तर बढ़ना जरूरी होता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भ्रूण सही तरीके से बढ़ रहा है।
बीटा hCG का स्तर कम होना गर्भ की अस्थिरता का संकेत हो सकता है। जैसे -
hCG का स्तर ज़्यादा होना हमेशा बुरा नहीं होता। कई बार यह अच्छी खबर भी हो सकती है।
IVF के बाद आमतौर पर बीटा hCG टेस्ट पॉजिटिव आने के एक से दो हफ्ते बाद पहला अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इसका उद्देश्य यह देखना होता है कि गर्भाशय में गेस्टेशनल सैक (Gestational Sac) जिसे आम बोलचाल की भाषा में थैली कहा जाता है वह दिखाई दे रहा है या नहीं। 6वें हफ्ते के आसपास भ्रूण की धड़कन (हार्ट बीट) भी सुनायी देने लगती है। अगर hCG स्तर सामान्य रूप से बढ़ रहा हो, तो इसका मतलब है कि गर्भ स्वस्थ है और बाद मेंअल्ट्रासाउंड में भी इसकी पुष्टि होती है।
IVF के बाद hCG टेस्ट केवल गर्भ की पुष्टि के लिए नहीं, बल्कि पूरे प्रोसेस की सफलता के लिए अहम है।
बीटा hCG टेस्ट गर्भधारण की पुष्टि का सबसे विश्वसनीय तरीका है, खासकर IVF प्रेगनेंसी में। यह न केवल बताता है कि गर्भ ठहरा है या नहीं, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भ्रूण कितनी अच्छी तरह विकसित हो रहा है। सही समय पर यह टेस्ट, नियमित मॉनिटरिंग और डॉक्टर की सलाह IVF ट्रीटमेंट की सफलता (IVF treatment success) में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
hCG रिपोर्ट का सही आकलन डॉक्टर ही कर सकते हैं इसलिए कभी भी रिपोर्ट को खुद से पढ़ कर कुछ अंदाज़ा न लगायें।
IVF के बाद अगर hCG का स्तर 50 mIU/ml या उससे अधिक है, तो इसे पॉजिटिव माना जाता है।
अगर hCG हर दो दिन में दोगुना हो रहा है, तो गर्भ स्वस्थ है। hCG की वैल्यू गिरना या स्थिर रहना खतरे का संकेत हो सकता है।
यह ब्लड टेस्ट से किया जाता है जो हार्मोन की मात्रा माप कर गर्भधारण की पुष्टि करता है।
14 दिन बाद IVF में 50–100 mIU/ml के बीच वैल्यू सामान्य मानी जाती है।
लगभग 1000–5000 mIU/ml तक। यह धीरे-धीरे बढ़ता रहता है।
आमतौर पर 25–50 mIU/ml के बीच।
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