आईयूआई तकनीक: इनफर्टिलिटी से जूझ रहे कपल्स के लिए इंट्रायूटरिन इनसेमिनेशन तकनीक एक बेहतरीन विकल्प है। जानिए नई आईयूआई तकनीक क्यों है बेहतर Indira IVF के साथ।
बदलती जीवन शैली, प्रदूषण, कैरियर, खराब लाइफस्टाइल और स्ट्रेस से गर्भधारण करने की क्षमता कम होती जा रही है। बदलती समाजिक और व्यावहारिक मान्यताओं ने भी बांझपन की समस्या बढ़ाई है। नि:संतानता की यह पीड़ा अब महिलाओं को सताने लगी है। इसके चलते टेस्ट ट्यूब बेबी और इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की डिमांड बढ़ती जा रही है। आईवीएफ के साथ ही इन दिनों आईयूआई तकनीक भी काफी ख्यात होती जा रही है। इस नई आईयूआई तकनीक से अभी तक कई दर्जन शिशुओं को जन्म दिया जा चुका है। यह तकनीक सस्ती होने के साथ ही काफी सटीक होने से इसमें सफलता दर ज्यादा है।
-बढ़ता प्रदूषण, तनाव एवं खान-पान की खराब आदतें बढ़ते बांझपन के मुख्य कारण हैं। इस कारण पुरुषों की प्रजनन क्षमता में लगातार कमी हो रही है। एल्कोहल सेवन, धूम्रपान, नशीली दवाओं का सेवन करने वाले और कीमोथेरेपी- रेडियोथेरेपी का इस्तेमाल करने वाले लोगों में भी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। महिलाओं में प्रजनन क्षमता में कमी के लिए जिम्मेदार कारण तनाव, मोटापा, शारीरिक असंतुलन, देर से गर्भधारण करने की चाह के साथ-साथ ध्रूमपान और मदिरापान है।
-आईयूआई (इन्ट्रायूटेराइन इनसेमिनेशन) एक तकनीक है, जिसके द्वारा महिला का कृत्रिम तरीके से गर्भधारण कराया जाता है। आईयूआई में पति या दानकर्ता के शुक्राणु को सीधे महिला के गर्भ में स्थापित कर दिया जाता है, जबकि परखनली शिशु तकनीक में भ्रूण को सामान्यतया अंडाणु निकलने के दो दिन या चार दिन बाद वापस गर्भ में रखा जाता है। इसके लिए इन्क्यूबटेर्स का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी पहले प्रयास की सफलता की दर 18 से 22 प्रतिशत के बीच होती है जबकि नई आईवीएफ तकनीक की 70 फीसदी तक है।
-विश्व में आईयूआई के पहले प्रयास की सफलता दर 10 से 15 प्रतिशत थी, जबकि नई आईयूआई तकनीक की सफलता दर 18 – 22 प्रतिशत हो गई है। नई आईयूआई तकनीक अधिक सफल होते हुए भी पुरानी तकनीक के मुकाबले सस्ती है।
-समय के साथ लोगों की सोच भी बदली है। सामाजिक बदलाव का ही असर है कि आज प्राकृतिक रूप से बच्चा न होने पर लोग कृत्रिम विधि से बच्चा जनने की नई एवं प्रभावी तकनीकों की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। नई आईयूआई तकनीक से अभी तक कई दर्जन शिशुओं को जन्म दिया जा चुका है। आज यह भी संभव है कि जिन पुरुषों के वीर्य (सीमन) में शुक्राणु नहीं है, उनके शुक्राणु सीधे टेसा से प्राप्त कर लिए जाएं। इस तरह अपर्याप्त शुक्राणुओं वाले पुरुषों का भी पिता बन सकना संभव हो गया है।
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