फाइब्रॉइड यानी बच्चेदानी में गांठ एक सामान्य लेकिन जटिल स्त्री रोग है, जो महिलाओं के गर्भाशय में असामान्य वृद्धि के रूप में विकसित होती है। ये मांसपेशियों की दीवारों में विकसित होती हैं और आकार में बहुत छोटे से लेकर बड़े तक हो सकती हैं। कई बार ये कोई लक्षण नहीं देतीं, लेकिन कुछ महिलाओं को भारी मासिक धर्म, पेट दर्द, पेशाब में दिक्कत जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह स्थिति 30 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं में अधिक देखी जाती है। यह लेख फाइब्रॉइड के अर्थ, प्रकार, कारण, इलाज और इससे जुड़ी आम जिज्ञासाओं को विस्तार से समझाता है।
फाइब्रॉइड यानी गर्भाशय में रसौली एक प्रकार की गांठ होती है जो गर्भाशय की मांसपेशियों में बनती है। ये सौम्य ट्यूमर होते हैं, यानी कैंसर नहीं होते। इन्हें लेयोमायोमा या मायोमा भी कहा जाता है। इनका आकार और संख्या अलग-अलग हो सकती है। कुछ महिलाओं को कोई लक्षण नहीं होते, जबकि अन्य को भारी पीरियड्स, पेट में सूजन, या बांझपन जैसी समस्याएं हो सकती हैं
फाइब्रॉइड कई प्रकार के होते हैं, जो उनकी स्थिति पर निर्भर करते हैं:
फायब्रॉइड्स गर्भाशय में बनने वाले ट्यूमर्स हैं। 10 हजार में से फायब्रॉयड के किसी एक ही मामले में कैंसर का खतरा होता है। ये गांठें अधिकतर 25-40 की आयु के बीच में होती हैं। जिन स्त्रियों में एस्ट्रोजन अधिक होता है, उनमें फायब्रॉइड यूट्रस और कैंसर दोनों का खतरा ज़्यादा होता है।
फायब्रॉइड क्यों होते हैं (बच्चेदानी में गांठ कैसे बनती है), इसकी वजह अब तक पता नहीं चल सकी है। आमतौर पर ये आनुवंशिक होते हैं। माना जाता है कि हर पांच में से एक स्त्री के यूट्रस में गांठ के लक्षण दिखते हैं। ओवरवेट या ओबेसिटी से ग्रस्त स्त्रियां भी इनकी चपेट में अधिक आती हैं। हॉर्मोनल बदलावों के कारण भी ये हो सकते हैं। इनका खतरा फायब्रॉइड्स के आकार व स्थिति पर निर्भर करता है। फाइब्रॉइड..जिसे आम भाषा में bachedani me ganth या गर्भाशय में रसौली भी कहते हैं।
ये ऐसी गांठें होती हैं जो कि महिलाओं के गर्भाशय में या उसके आसपास उभरती हैं। ये मांस-पेशियां और फाइब्रस उत्तकों से बनती हैं और इनका आकार कुछ भी हो सकता है। इसके कारण बांझपन का खतरा होने की आशंका रहती है। आइये जानते है क्या होते है बच्चेदानी में गांठ के कारण, लक्षण और उपचार?
फाइब्रॉइड बनने के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं:
बच्चेदानी में गांठ के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं-
अगर गर्भाशय फाइब्रॉइड का आकार बड़ा हो चुका है तो डॉक्टर्स इसका इलाज या तो दवाइयां दे कर करते हैं या फिर दूरबीन वाली (Hysteroscopy/Laparoscopy) सर्जरी द्वारा।
भले ही यूट्रस में कोई फायब्रॉइड छोटा सा हो, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान वह भी गर्भ की तरह ही बढने लगता है। शुरुआती महीनों में इसकी ग्रोथ ज्यादा तेजी से होती है। इसमें बहुत दर्द और ब्लीडिंग होती है, कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड सकता है। लेकिन आज के समय में डॉक्टर, यूट्रस के भीतर तक देख कर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि फायब्रॉइड विकसित होते भ्रूण की जगह न ले सकें। अल्ट्रासाउंड के जरिये भ्रूण और फायब्रॉयड्स के विकास की पूरी प्रक्रिया को देखा जा सकता है। कई बार फायब्रॉयड्स सर्विक्स की साइड में या लोअर साइड में हों तो इनसे बर्थ कैनाल ब्लॉक हो जाती है और नॉर्मल डिलिवरी नहीं हो सकती, तब सी-सेक्शन करना पडता है।
गर्भाशय फाइब्रॉइड का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि आपके अंदर किस प्रकार के लक्षण नजर आ रहे हैं। अगर आपको फाइब्रॉइड है, लेकिन कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं, तो इलाज की जरूरत नहीं होती। फिर भी डॉक्टर से नियमित रूप से जांच करवाते रहें। वहीं, अगर आप मीनोपाॅज़ के पास हैं, तो आपके फाइब्रॉइड सिकुड़ने लगते हैं। इसके अलावा, अगर आपमें फाइब्रॉइड के लक्षण नजर आते हैं, तो उनका इलाज बीमारी की स्थिति के अनुसार किया जाता है।
लक्षणों के अनुसार डॉक्टर आपको कुछ दवाईयां दे सकते हैं, जो फाइब्रॉइड के प्रभाव को कम करने का काम करती हैं। ये दवाएं इस प्रकार हैंः
आयुर्वेद में बच्चेदानी की गांठ को रसौली कहा जाता है और इसके लिए कई जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है। कांचनार गुग्गुलु, अशोक चूर्ण, त्रिफला, और अलसी जैसी औषधियां फाइब्रॉइड को गलाने में सहायक मानी जाती हैं। पंचकर्म चिकित्सा जैसे बस्ती और उत्तर बस्ती भी उपयोगी हो सकती हैं। आयुर्वेदिक इलाज में आहार सुधार, योग, और तनाव प्रबंधन भी शामिल होता है।
नोट: ध्यान रहें कि ये दवाएं फाइब्रॉइड से अस्थाई तौर पर ही राहत दिला सकती हैं। जैसे ही दवाओं को लेना बंद किया, फाइब्रॉएड फिर से हो सकता है। साथ ही इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं, जो कभी-कभी गंभीर रूप ले सकते हैं।
फाइब्रॉइड का ऑपरेशन आमतौर पर हिस्टेरेक्टॉमी या मायोमेक्टॉमी के रूप में किया जाता है। भारत में इसका खर्च ₹40,000 से ₹1,50,000 तक हो सकता है, जो अस्पताल, शहर और तकनीक पर निर्भर करता है। लेप्रोस्कोपिक सर्जरी अपेक्षाकृत महंगी होती है लेकिन रिकवरी जल्दी होती है। सरकारी अस्पतालों में यह खर्च काफी कम हो सकता है।
जब लक्षण बेहद गंभीर हों, तो डॉक्टर सर्जरी करने का निर्णय लेते हैं। यहां हम कुछ प्रमुख सर्जरी की प्रक्रियाओं के बारे में बता रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से कुछ सर्जरी के बाद महिला के गर्भवती होने की संभावना न के बराबर हो जाती है। इसलिए, सर्जरी कराने से पहले एक बार डॉक्टर से इस विषय में विस्तार से बात कर लें।
डॉक्टर पेट में कट लगाकर गर्भाशय को बाहर निकालते है जिससे फाइब्रॉएड भी साथ में ही बाहर आ जाता हैं। यह प्रक्रिया उसी प्रकार होती है, जैसे सिजेरियन डिलीवरी के दौरान होती है।
इससे जूझ रहीं महिलाओं को अब चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि फाइब्रॉइड के बावजूद भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में आईवीएफ की मदद से माँ बनना संभव है।
फाइब्रॉइड एक सामान्य लेकिन नजरअंदाज की जाने वाली समस्या है। समय पर जांच और सही इलाज से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। आयुर्वेदिक और एलोपैथिक दोनों विकल्प उपलब्ध हैं, लेकिन लक्षणों की गंभीरता के अनुसार निर्णय लेना आवश्यक है।
अगर बच्चेदानी में गांठ बन जाए तो सबसे पहले गायनेकोलॉजिस्ट से जांच करानी चाहिए। अल्ट्रासाउंड या MRI से गांठ का आकार और प्रकार पता चलता है।
कुछ आयुर्वेदिक दवाएं और जीवनशैली में बदलाव से छोटी गांठें गल सकती हैं। लेकिन बड़े या लक्षणकारी फाइब्रॉइड के लिए सर्जरी या दवाओं की जरूरत पड़ सकती है।
ज्यादा फैट वाला खाना, रेड मीट, प्रोसेस्ड फूड, और शक्कर से परहेज करें। सोया प्रोडक्ट्स और शराब भी हार्मोनल असंतुलन बढ़ा सकते हैं।
गांठ बनने का मुख्य कारण एस्ट्रोजन हार्मोन का असंतुलन होता है। विटामिन D की कमी भी इसके जोखिम को बढ़ा सकती है।
इलाज गांठ के आकार और लक्षणों पर निर्भर करता है। मायोमेक्टॉमी, हॉर्मोनल थेरेपी, या हायस्टेरेक्टॉमी जैसे विकल्प उपलब्ध हैं। आयुर्वेद में भी कुछ सफल उपाय बताए गए हैं।
बहुत बड़ी, तेजी से बढ़ने वाली या कैंसरस गांठें खतरनाक हो सकती हैं। हालांकि अधिकतर फाइब्रॉइड गैर-कैंसरयुक्त होते हैं।
वजन नियंत्रित रखें, हार्मोन संतुलन बनाए रखें, और नियमित जांच कराएं। विटामिन D और फाइबर युक्त आहार मददगार हो सकता है।
सामान्यतः 4 से 6 सप्ताह बाद संबंध बनाए जा सकते हैं, लेकिन डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही निर्णय लें।
पानी की गांठ (सिस्ट) हार्मोनल बदलाव या अंडाशय की कार्यप्रणाली से बनती है। ये अक्सर खुद ही ठीक हो जाती हैं, लेकिन बड़ी या दर्द वाली गांठों के लिए इलाज जरूरी है।
गांठ से भारी मासिक धर्म, पेट दर्द, गर्भधारण में कठिनाई, और बार-बार पेशाब जैसी समस्याएं हो सकती हैं।