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Synopsis

Meaning of Fibroids in Hindi: यूट्रस में गांठ (bachedani me ganth) असामान्य वृद्धि हैं जो यूट्रस में या ऊपर बढ़ता हैं। जानिए बच्चेदानी में गांठ होने के लक्षण और उपचार Indira IVF के साथ।

कैसे होती है गर्भावस्था के दौरान बच्चेदानी में गांठ? Know fibroid uterus meaning in hindi

फायब्रॉइड्स गर्भाशय में बनने वाले ट्यूमर्स हैं। 10 हजार में से फायब्रॉयड के किसी एक ही मामले में कैंसर का खतरा होता है। ये गांठें अधिकतर 25-40 की आयु के बीच में होती हैं। जिन स्त्रियों में एस्ट्रोजन अधिक होता है, उनमें फायब्रॉइड यूट्रस और कैंसर दोनों का खतरा ज़्यादा होता है।

फायब्रॉइड क्यों होते हैं (बच्चेदानी में गांठ कैसे बनती है), इसकी वजह अब तक पता नहीं चल सकी है। आमतौर पर ये आनुवंशिक होते हैं। माना जाता है कि हर पांच में से एक स्त्री के यूट्रस में गांठ के लक्षण दिखते हैं। ओवरवेट या ओबेसिटी से ग्रस्त स्त्रियां भी इनकी चपेट में अधिक आती हैं। हॉर्मोनल बदलावों के कारण भी ये हो सकते हैं। इनका खतरा फायब्रॉइड्स के आकार व स्थिति पर निर्भर करता है। फाइब्रॉइड..जिसे आम भाषा में bachedani me ganth या गर्भाशय में रसौली भी कहते हैं।

ये ऐसी गांठें होती हैं जो कि महिलाओं के गर्भाशय में या उसके आसपास उभरती हैं। ये मांस-पेशियां और फाइब्रस उत्तकों से बनती हैं और इनका आकार कुछ भी हो सकता है। इसके कारण बांझपन का खतरा होने की आशंका रहती है। आइये जानते है क्या होते है बच्चेदानी में गांठ के कारण, लक्षण और उपचार?

बच्चेदानी में गांठ (यूट्रस में गांठ) होने के कारण-

बच्चेदानी में गांठ होने के कारण कुछ इस प्रकार हैं-

गर्भाशय में रसौली अर्थात् गर्भाशय फाइब्रॉइड की समस्या, आनुवांशिक भी हो सकती है। अगर परिवार में किसी महिला को ये बीमारी है तो ये पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ सकती है। या फिर ये हार्मोन के स्त्राव में आए उतार-चढ़ाव की वजह से भी हो सकता है। बढ़ती उम्र, प्रेग्नेंसी, मोटापा भी इसका एक कारण हो सकते हैं। फाइब्रॉइड बीमारी से डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि 99 फीसदी ये बीमारी बिना कैंसर वाली होती है।

बच्चेदानी में गांठ (यूट्रस में गांठ) के लक्षण-

बच्चेदानी में गांठ के लक्षण कुछ इस प्रकार हैं-

  • माहवारी के समय या बीच में ज्यादा रक्तस्राव, जिसमे थक्के शामिल हैं।
  • नाभि के नीचे पेट में दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द।
  • बार-बार पेशाब आना।
  • मासिक धर्म के समय दर्द की लहर चलना।
  • यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना।
  • मासिक धर्म का सामान्य से अधिक दिनों तक चलना।
  • नाभि के नीचे पेट में दबाव या भारीपन महसूस होना।
  • प्राइवेट पार्ट से खून आना।
  • कमजोरी महसूस होना।
  • पेट में सूजन।
  • एनीमिया।
  • कब्ज।
  • पैरों में दर्द।

अगर गर्भाशय फाइब्रॉइड का आकार बड़ा हो चुका है तो डॉक्टर्स इसका इलाज या तो दवाइयां दे कर करते हैं या फिर दूरबीन वाली (Hysteroscopy/Laparoscopy) सर्जरी द्वारा।

 

गर्भावस्था (प्रेग्नेंसी) के दौरान बच्चेदानी में गांठ - 

भले ही यूट्रस में कोई फायब्रॉइड छोटा सा हो, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान वह भी गर्भ की तरह ही बढने लगता है। शुरुआती महीनों में इसकी ग्रोथ ज्यादा तेजी से होती है। इसमें बहुत दर्द और ब्लीडिंग होती है, कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड सकता है। लेकिन आज के समय में डॉक्टर, यूट्रस के भीतर तक देख कर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि फायब्रॉइड विकसित होते भ्रूण की जगह न ले सकें। अल्ट्रासाउंड के जरिये भ्रूण और फायब्रॉयड्स के विकास की पूरी प्रक्रिया को देखा जा सकता है। कई बार फायब्रॉयड्स सर्विक्स की साइड में या लोअर साइड में हों तो इनसे बर्थ कैनाल ब्लॉक हो जाती है और नॉर्मल डिलिवरी नहीं हो सकती, तब सी-सेक्शन करना पडता है।

बच्चेदानी में गांठ (यूट्रस में गांठ) का इलाज-

गर्भाशय फाइब्रॉइड का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि आपके अंदर किस प्रकार के लक्षण नजर आ रहे हैं। अगर आपको फाइब्रॉइड है, लेकिन कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं, तो इलाज की जरूरत नहीं होती। फिर भी डॉक्टर से नियमित रूप से जांच करवाते रहें। वहीं, अगर आप मीनोपाॅज़  के पास हैं, तो आपके फाइब्रॉइड सिकुड़ने लगते हैं। इसके अलावा, अगर आपमें फाइब्रॉइड के लक्षण नजर आते हैं, तो उनका इलाज बीमारी की स्थिति के अनुसार किया जाता है।

 

बच्चे दानी में गांठ का इलाज : दवा आधारित इलाज-

लक्षणों के अनुसार डॉक्टर आपको कुछ दवाईयां दे सकते हैं, जो फाइब्रॉइड के प्रभाव को कम करने का काम करती हैं। ये दवाएं इस प्रकार हैंः

  • दर्द निवारक दवाएं
  • गर्भनिरोधक गोलियां
  • प्रोजेस्टिन-रिलीजिंग इंट्रायूटरिन डिवाइस (IUD)
  • गोनाडोट्रोपिन-रिलीजिंग हार्मोन एगोनिस्ट (GnHRa)
  • एंटीहार्मोनल एजेंट या हार्मोन मॉड्यूलेटर

नोट: ध्यान रहें कि ये दवाएं फाइब्रॉइड से अस्थाई तौर पर ही राहत दिला सकती हैं। जैसे ही दवाओं को लेना बंद किया, फाइब्रॉएड फिर से हो सकता है। साथ ही इन दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं, जो कभी-कभी गंभीर रूप ले सकते हैं।

बच्चेदानी में गांठ का सर्जरी कैसे होता है?

जब लक्षण बेहद गंभीर हों, तो डॉक्टर सर्जरी करने का निर्णय लेते हैं। यहां हम कुछ प्रमुख सर्जरी की प्रक्रियाओं के बारे में बता रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि इनमें से कुछ सर्जरी के बाद महिला के गर्भवती होने की संभावना न के बराबर हो जाती है। इसलिए, सर्जरी कराने से पहले एक बार डॉक्टर से इस विषय में विस्तार से बात कर लें।

एब्डोमिनल हिस्टेरेक्टोमी

डॉक्टर पेट में कट लगाकर गर्भाशय को बाहर निकालते है जिससे फाइब्रॉएड भी साथ में ही बाहर आ जाता हैं। यह प्रक्रिया उसी प्रकार होती है, जैसे सिजेरियन डिलीवरी के दौरान होती है।

वजाइनल हिस्टेरेक्टोमीः डॉक्टर पेट में कट लगाने की जगह योनी के रास्ते गर्भाशय को बाहर निकालते हैं और गर्भाशय के साथ फाइब्रॉएड को हटाते हैं। अगर फाइब्रॉएड का आकार बड़ा है, तो डॉक्टर इस सर्जरी को नहीं करने का निर्णय लेते हैं।

लेप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टोमीः वजाइनल हिस्टेरेक्टोमी की तरह यह सर्जरी भी कम जोखिम भरी है और इसमें मरीज को रिकवर होने में कम समय लगता है। यह सर्जरी सिर्फ कुछ मामलों में ही प्रयोग की जाती है।

मायोमेक्टोमी: इस सर्जरी में गर्भाशय की दीवार से फाइब्रॉएड को हटाया जाता है। अगर आप भविष्य में गर्भवती होने की सोच रही हैं, तो डॉक्टर सर्जरी के लिए इस विकल्प को चुन सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि यह सर्जरी हर प्रकार के फाइब्रॉएड के लिए उपयुक्त नहीं है।

हिस्टेरोस्कोपिक रिसेक्शन ऑफ फाइब्रॉइडः इसमें फाइब्रॉएड को हटाने के लिए पतली दूरबीन (हिस्टेरोस्कोपी) और छोटे सर्जिकल उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। इसके जरिए गर्भाशय के अंदर पनप रहे फाइब्रॉइड को निकाला जाता है। जो महिलाएं भविष्य में गर्भवती होना चाहती हैं, उनके लिए यह सर्जरी सबसे उपयुक्त है।

इससे जूझ रहीं महिलाओं को अब चिंता करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि फाइब्रॉइड के बावजूद भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में आईवीएफ की मदद से माँ बनना संभव है।

 

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