अगर पेट के निचले हिस्से में दर्द, अधिक रक्त स्त्राव, यूरिन करते समय दर्द होने जैसी समस्या है तो यह जानकारी आपके लिए फायदेमंद है …
पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज यानि पीआईडी गर्भाशय,फैलोपियन ट्यूबऔर अंडाशय में होने वाला इन्फैक्शन है, कई बार यह इन्फैक्शन पैल्विक पेरिटोनियम तक पहुंच जाता है । पीआईडी का यहीं इलाज करना जरूरी है क्योंकि इस के कारण महिलाओं में ऐक्टोपिक प्रैगनेंसी या गर्भाशय के बाहर प्रैगनेंसी , संतानहीनता और पैल्विक में लगातार दर्द की शिकायत हो सकती है आमतौर पर यह बैक्टीरियल इन्फैक्शन होता है जिसके लक्षणों में पेट के निचले हिस्से में दर्द, बुखार, वैजाइनल डिस्चार्ज, आसामान्य ब्लीडिंग, यौन संबंध बनाने या पेशाब करते समय तेज दर्द महसूस होना शामिल है।
पीआईडी के प्रारम्भिक कारण बताते हुएइन्दिरा आईवीएफ लखनऊकी आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ. सोनल आनन्द बताती हैं कि
बैक्टीरिया योनी या गर्भाशय ग्रीवा द्वारा महिलाओं के प्रजनन अंगों तक पहंचते हैं और पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज का कारण बनते हैं पीआईडी इन्फैक्शन के लिए कई प्रकार के बैक्टीरिया जिम्मेदार होते हैं।
ज्यादातर यह इंफैक्शन यौन संबंधों के दौरान होने वाले बैक्टीरियल इन्फैक्शन के कारण होता है इस की शुरूआत क्लैमाइडिया और गनेरिया या प्रमेह के रूप में होती है । 1 से अधिक सैक्सुअल पार्टनर होने की स्थिति में भी पीआईडी होने का खतरा बढ़ जाता है, कई मामलों में क्षय रोग यानी टीबी भी इस के होने का कारण बनता है । 20 से 40 वर्ष की महिलाओं में इस के होने की आश्ांका अधिक रहती है लेकिन कई बार मेनापौज की अवस्था पार कर चुकी महिलाओं में भी यह समस्या देखी जाती है।
यह होती है परेशानी –
पीआईडी के कारण कई बार प्रजनन अंग स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और फैलोपियन ट्यूब में भी जख्म हो सकता है इस के कारण गर्भाशय तक अंडे पहुंचने में बाधा आती है ऐसी स्थिति में स्पर्म अंडों तक नहीं पहुंच पाता या एग फर्टिलाइज नहीं हो पाते हैं , जिसकी वजह से भ्रूण का विकास गर्भाशय के बाहर ही होने लगता है
क्षतिग्रस्त होने और बारबार समस्या होने पर इनफर्टिलिटी का खतरा बढ़ जाता है वहीं जब पीआईडी की समस्या टीबी के कारण होती है तो मरीज को एंडोमैट्रियल ट्यूबरकुलोसिस होने की आश्ांका रहती है और यह भी इनफर्टिलिटी का कारण बनता है कई बार तो पीआईडी के कारण मासिक स्त्राव के बंद होने की भी शिकायत हो जाती है।
भले ही पीआईडी की समस्या के कुछ लक्षण नजर आते हों, इसके बावजूद इसका पता लगाने के लिए किसी प्रकार की जांच प्रक्रिया उपलब्ध नहीं है, मरीज से बातचीत के जरीए और लक्षणों के आधार पर ही डाक्टर इस की पुष्टि करते हैं। डाक्टर को इस बात का पता लगाने की जरूरत हो सकती है कि किस प्रकार के बैक्टिरिया के कारण पीआईडी की समस्या हो रही है इसके लिए क्लैमाइडिया या गनोरिया की जांच की जाती है
फैलोपियन ट्यूब में इंफैक्शन का पता लगाने के लिए अल्ट्रसाउंड किया जा सकता है पीआईडी का इलाज एंटीबायोटिक द्वारा किया जाता है मरीज को दवा का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है
टीबी के कारण पीआईडी की समस्या होने पर एंटीटीबी ट्रीटमेंट किया जाता है वैसे टीबी के इलाज के बाद पीआईडी का उपचार किया जा सकता है यदि इलाज के बाद भी मरीज की स्थिति में सुधार नहीं होता है तो सर्जरी की सलाह दी जाती है
बचाव तरीकों के बारे में इन्दिरा आईवीएफ रोहतक की आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ. राधा कम्बोज का कहना है कि
चुंकि हर बार पीआईडी होने का कारण एसटीआई नहीं होता है , इसलिए हर बार इससे बचाव संभव नहीं, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रख कर इसके होने के खतरे को कम जरूर किया जा सकता है ।
गर्भनिरोध के लिए कंडोम जैसे उपाय अपनाएं
एक से अधिक व्यक्ति से यौन संबंध बनाने से बचें
अल्कोहल या ड्रग्स लेने से बचें
जिस महिलाओं के पीआईडी के बाद प्रजनन अंग क्षतिग्रस्त हो गए हों, उन्हें फर्टिलिटी विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिए ताकि सेहतमंद गर्भावस्था को बनाए रखा जा सके। पैल्विक इन्फैक्शन के कारण गर्भाशय के बाहर प्रैगनेंसी होने का खतरा 6-7 गुना तक बढ़ जाता है इसके खतरे को दूर करने और फैलोपियन ट्यूब में समस्या होने पर आईवीएफ थैरेपी कराने की सलाह दी जाती है क्योंकिआईवीएफके जरिए ट्यूब को पूरी तरह से पार किया जा सकता है
फैलोपियन ट्यूब में किसी प्रकार का अवरोध होने की स्थिति में रिप्रोडक्टिव टैक्नोलॉजी ट्रीटमेंट की सलाह दी जाती है । गर्भावस्था के दौरान यदि पीआईडी की समस्या फिर से हो जाती है तो मां और बच्चे दोनों की जान को खतरा रहता है ऐसे में डाक्टरी सलाह की जरूरत होती है ताकि आईवीएफ द्वारा एंटीबायोटिक दिया जा सके। पीआईडी जैसी समस्या में आईवीएफ तकनीक से सफलता मिलने की संभावना अधिक रहती है ।
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