शर्म-झिझक छोडें, वीर्य की कराएं जांच और ईलाज से संभव है संतान बदलती जीवनशैली और आपाधापी के चलते भारतीय पुरुषों के वीर्य की गुणवत्ता और शुक्राणुओं की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। एक चिंताजनक शिकायत इन दिनों सामने आई है कि भारतीय पुरुषों का वीर्य अब पहले जैसा नहीं रह गया है। ऐसे पुरुषों में पिता बनने की हसरत इन दिनों चिंता का विषय बन गई है। वीर्य की जांच के नाम पर भी पुरुष कतराते हैं। नि:संतानता के कारकों में कई जगह तो पुरुषों की यह सोच है कि वह तो कारण हो ही नहीं सकते हैं। पुरुषों की इसी शर्म, उनके आत्मसम्मान और इलाज से इनकार की समस्या ने समाज में इनफर्टिलिटी को और बढ़ावा दिया है।
असुरक्षित यौन संबंध बनाने के बाद भी यदि कोई पुरुष किसी महिला को गर्भवती नहीं कर पाता है तो यह स्थिति उस पुरुष में बांझपन की समस्या को इंगित करती है। आमतौर पर पुरुषों की प्रजनन क्षमता उनके स्पर्म की क्वालिटी और संख्या पर निर्भर करती है। यदि सेक्स के दौरान स्खलित होने पर पुरुष के स्पर्म कम संख्या में निकलते हैं और कमजोर होते हैं तो इस स्थिति में महिला को प्रेगनेंट होने में कठिनाई होती है। इसके अलावा पुरुषों में बांझपन की समस्या के पीछे खराब जीवनशैली, बीमारी, चोट, गंभीर स्वास्थ्य समस्या आदि कारक जिम्मेदार होते हैं। अमेरिका में छपे एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि काम-काज का दबाव पुरुषों में नपुंसकता पैदा कर सकता है क्योंकि उससे सेक्स के लिए जरूरी हार्मोन की कमी हो जाती है.
आंकडें कहते हैं-पुरुषों में शुक्राणु की संख्या आधी रह गई
-दिसंबर, 2012 में एक ग्लोबल अध्ययन में पाया गया कि शुक्राणुओं की औसत संख्या में 32 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई। इससे चिकित्साजगत में हडकम्प मच गया और कई अध्ययन शुरू हुए। भारत में इस सिलसिले में पहला अध्ययन मणिपाल के कस्तूरबा अस्पताल में 2008 में 7,700 पुरुषों पर किया गया था जिनका वीर्य खराब क्वालिटी का पाया गया. इसके बाद से कई अध्ययन हो चुके हैं।
-लखनऊ के सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट में जमा 19,734 स्वस्थ पुरुषों के वीर्य पर किए एक मानक अध्ययन में पता चला है कि वीर्य की संरचना और गतिशीलता में वास्तविक गिरावट आई है, जो चिंताजनक है।
मशहूर पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के मुताबिक, पिछले पचास साल में दुनिया भर के पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या आधी रह गई है।
-विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सामान्य पुरुषों के लिए शुक्राणुओं की संख्या में संशोधन कर के उसे पचास के दशक के पैमाने 11.3 करोड़ प्रति मिलीलीटर (एमएल) से गिरा कर अब दो करोड़ प्रति मिलीलीटर पर तय कर दिया है।
–दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के एक शोध से पता चला कि तीन दशक के दौरान प्रति मिलीलीटर वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या छह करोड़ से घटकर दो करोड़ रह गई है।
-सरल अर्थो में पुरुष का सीमेन संभोग के चरम अवस्था पर लिंग से निकलता है। यह एक दूधिया तरल पदार्थ होता है जिसमें पुरुष का स्पर्म होता है। एक सामान्य पुरुष एक बार स्खलन में 20 से 50 करोड़ शुक्राणु स्खलित करता है। कुल शुक्राणुओं में सिर्फ एक-तिहाई ही सामान्य संरचना के होते हैं जिनका अगला सिरा अंडाकार और पूंछ काफी लंबी होती है। इन्हें किसी गाइडेड मिसाइल की तरह तेज गति से तैरने की जरूरत होती है ताकि वे फर्टिलाइजेशन के काम आ सकें। सिर्फ 50 से 100 शुक्राणु ही अंडाणु तक पहुंच पाते हैं और करीब दर्जन भर उसके सुरक्षा कवच को भेदने की कोशिश करते हैं जिनमें कोई एक ही कामयाब हो पाता है। इस प्रक्रिया में जब पुरुष के स्पर्म की संख्या कम और गुणवत्ता खराब होती है तो वह महिला के अंडे से नहीं मिल पाता है इस कारण पुरुष महिला को प्रेगनेंट करने में असमर्थ हो जाता है। यदि पुरुष का स्पर्म असामान्य आकार का होता है तब भी वह महिला के अंडे के साथ निषेचित नहीं हो पाता है।
– पुरुषों के शरीर में पहले से ही बांझपन के कुछ लक्षण जैसे हार्मोन का असंतुलन, टेस्टिस की नसें फैल जाना या शुक्राणु नली का अवरूद्ध हो जाना, आनुवांशिक विकार आदि संकेत उन्हें महसूस तो होते हैं लेकिन शुरू में ही वे इस पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य मुख्य लक्षण हैं जिनसे पुरुष बांझपन का पता चलता है।
-यौन संबंध बनाने में दिक्कत आना, स्खलन में कठिनाई और कम मात्रा में सीमन निकलना, सेक्स की इच्छा, उत्तेजना में कमी आदि।
-टेस्टिस और इसके आसपास की जगहों में दर्द, सूजन और गांठ की समस्या होना।
– श्वसन तंत्र में बार-बार इंफेक्शन, सूंघने की क्षमता में कमी आदि
-पुरुषों में असामान्य रूप से स्तन का बढ़ना, शरीर और चेहरे पर बालों का कम होना गुणसूत्र या हार्मोनल असामान्यता का लक्षण है।
-पुरुषों के प्रति मिली लीटर सीमेन में शुक्राणुओं को संख्या 15 लाख से कम होना या स्खलन के दौरान कुल शुक्राणुओं की संख्या 39 लाख से कम होना पुरुषों में बांझपन का संकेत है।
-टेस्टिकल्स में तेज बढ़ता दर्द वेरिकोसिल कहलाता है। इसके कारण भी पुरुषों में बांझपन की समस्या हो जाती है। वेरिकोसिल नसों में एक प्रकार की सूजन है जिसके कारण पुरुष का वृषण या अंडकोश सूख जाता है और वे बांझपन के शिकार हो जाते हैं।
-पुरुषों के गुप्तांगों में इंफेक्शन होना भी नि:संतानता का एक कारण है। पुरुषों में कुछ संक्रमण शुक्राणु की गुणवत्ता, मात्रा, और वितरण को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ इंफेक्शन ऐसे होते हैं जो स्पर्म बनने में बाधा उत्पन्न करते हैं और स्पर्म की नली को अवरूद्ध कर देते हैं। पुरुष के अंडकोश में सूजन होने या यौन संचारित संक्रमण जैसे गोनोरिया एवं एचआईवी होने के कारण भी पुरुष वीर्य कोष क्षतिग्रस्त हो जाता है जिसके कारण शुक्राणु पर्याप्त मात्रा में नहीं बनते हैं।
-यदि किसी पुरुष को ट्यूमर की समस्या हो तो हार्मोन का उत्पादन करने वाली ग्रंथियां जैसे पिट्यूटरी ग्लैंड और उसके प्रजनन अंग इससे सीधे प्रभावित होते हैं।
-पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन की कमी एवं अन्य हार्मोन संबंधी दिक्कतों के कारण भी उन्हें बांझपन की समस्या हो सकती है।
-अधिक रेडिएशन और एक्सरे के प्रभाव से भी पुरुषों में स्पर्म बनना कम हो जाता है जिससे वे महिला को गर्भवती करने में असमर्थ हो जाते हैं।
-अधिक एल्कोहल के सेवन, धूम्रपान, शरीर का वजन बढ़ना एवं ड्रग्स के सेवन से भी पुरुषों को बांझपन हो सकता है।
-सबसे पहले डॉक्टर पुरुष का शारीरिक परीक्षण करते हैं और कुछ टेस्ट के जरिए पुरुष बांझपन की समस्या का निदान करते हैं। सीमेन का टेस्ट करते हैं और स्पर्म की गुणवत्ता और संख्या का पता लगाते हैं। इसके अलावा पेनिस से तरल पदार्थ निकालकर संक्रमण की जांच की जाती है। फिर लिंग, अंडकोश और प्रोस्टेट ग्रंथि की जांच करते हैं। बांझपन के निदान के लिए निम्न टेस्ट किए जाते हैं।
1-ब्लड टेस्ट- इससे टेस्टोस्टेरोन के स्तर और अन्य हार्मोन की जांच की जाती है।
2-सीमेन की जांच-सीमेन का सैंपल लेकर इसकी सांद्रता, रंग एवं गुणवत्ता जांची जाती है।
3-अल्ट्रासाउंड-अल्ट्रासाउंड के जरिए अंदरूनी समस्याओं और खराब स्खलन का पता चलता है।
4- क्लैमिडिया टेस्ट–पुरुषों में क्लैमिडिया के कारण भी बांझपन होता है। यह टेस्ट करके इस बीमारी का निदान किया जाता है।
-डॉक्टर सबसे पहले पुरुष बांझपन के कारणों के बारे में पता लगाते हैं। फिर इसी आधार पर पुरुषों में बांझपन का इलाज किया जाता है।
-अधिक स्पर्म के उत्पादन के लिए पुरुषों को दवाएं दी जाती हैं।
-दवाओं के द्वारा ही पुरुषों में सेक्स के लिए उत्तेजना को भी बढ़ाया जाता है।
-इंफेक्शन को दूर करने के लिए एंटीबायोटिक्स दिया जाता है।
-हार्मोन असंतुलन को दूर करने के लिए हार्मोन की दवाईया दी जाती हैं ।
इसके बावजूद नि:संतानता बने रहने पर अन्य इलाज किये जाते हैं। यदि किसी पुरुष में स्पर्म की संख्या कम है तो कृत्रिम तरीके से वीर्यारोपण किया जाता है। इस प्रक्रिया में कई बार स्खलन कराकर स्पर्म एकत्र किए जाते हैं। इसके बाद उस स्पर्म को महिला के गर्भाशय या फैलोपियन ट्यूब में प्रवेश कराया जाता है।
-उपरोक्त तमाम प्रयासों के बाद भी नि:संतानता बनी रहे तो आईवीएफ भी एक विकल्प है। इस प्रक्रिया में पुरुषों के स्पर्म और महिलाओं के अंडे को एक प्रयोगशाला में निषेचित किया जाता है उसके बाद निषेचित अंडे को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
-जांच में किसी पुरुष के शरीर में स्पर्म बिल्कुल नहीं बनने पर दाता शुक्राणु की सहायता से महिला को गर्भवती कराया जाता है। इस प्रक्रिया में स्पर्म बैंक से डोनर स्पर्म लिया जाता है और कृत्रिम वीर्यारोपण से महिला के गर्भाशय में डाला जाता है।
-पुरुषों में आनुवांशिक समस्या और बीमारी के कारण हुई नि:संतानता को कम नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ बातों को ध्यान रखकर पुरुष नि:संतानता की संभावना को जरूर कम कर सकते हैं।
-यौन संचारित संक्रमण से होने वाले रोगों से बचें और समस्या होते ही तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
-रेडिएशन से दूर रहें।
-अधिक और लगातार शराब का सेवन करने से बचें।
-नशीली दवाओं और ड्रग्स के सेवन से बचें।
-विषाक्त और हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने से बचें।
-अधिक देर तक गर्म पानी में स्नान करने से बचें, इससे वृषण गर्म हो सकता है।
-मानसिक तनाव से दूर रहें और वजन को नियंत्रित रखें।
कम या खराब शुक्राणुओं की स्थिति में आई वी एफ की विभिन्न तकनीके लाभकारी साबित हो रही हैं |