Skip to main content

Synopsis

डोनर एम्ब्रियो - पुरुष और महिला युग्मक के परिणामस्वरूप बनने वाले भ्रूण का स्थानान्तरण जो प्राप्तकर्ता से या उसके साथी से नहीं लिया गया भ्रूण डोनेशन आईवीएफ के रूप में जाना जाता है। डोनर एम्ब्रियो चुनने के कारण, प्रक्रिया, भ्रूण डोनेशन के प्रभाव - अधिक जानने के लिए पढ़े

डोनर एम्ब्रियो के साथ आईवीएफ – पुरुष और महिला युग्मक (गेमेट) के परिणामस्वरूप बनने वाले भ्रूण का स्थानान्तरण जो प्राप्तकर्ता से या उसके साथी से नहीं लिया गया भ्रूण डोनेशन आईवीएफ के रूप में जाना जाता है। इसे एक प्रकार के तीसरे पक्ष के प्रजनन/ रिप्रोडक्शन के रूप में भी जाना जाता है।

डोनर एम्ब्रियो चुनने के कारण –

1. गोनैडल डिसजेनेसिस (पुरुष या महिला में गोनाड का दोषपूर्ण भ्रूण विकास)।
2. महिला में समय से पहले ओवेरेयिन फैल्योर या आईट्रोजेनिक ओवेरियन फैल्योर (ओवेरियन सर्जरी या रेडिएशन के कारण) या ओवेरियन स्टीमुलेशन के प्रति खराब प्रतिक्रिया और युग्मक उत्पादन में पुरूष गंभीर गड़बड़ी से ग्रस्त है।
3. युगल जो वंशानुगत बीमारी के वाहक हैं, नवजात शिशु में बीमारी के कारण हो सकते हैं।
4. पुरुष निःसंतानता के साथ जो महिलाएं रजोनिवृत्ति प्राप्त कर चुकी हैं।

प्रक्रिया

प्रक्रिया में या तो पहले से दान-दाताओं / दंपती जो प्रजनन उपचार से गुजर रहे हैं द्वारा क्रायोप्रिजवर्ड (सुरक्षित) भ्रूणों या ताजे भ्रूण जो विशेष रूप से दान के उद्देश्य से दाता शुक्राणु और दाता अंडे से बनाए गए थे, गर्भावस्था को प्राप्त करने के लिए प्राप्तकर्ता महिला में हस्तांतरित किए जाते हैं।

इसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं-

1. प्राप्तकर्ता की जांचे
2. दाता का चयन और मूल्यांकन/जांचे
3. प्राप्तकर्ता दम्पती और दाता की काउंसलिंग
4. प्राप्तकर्ता दम्पती और दाता की सहमति
5. अंडेदाता की आवेरी स्टीमुलेशन को नियंत्रित करना
6. अंडा दाता के अण्डे निकालना (रिट्रीवल)
7. प्राप्तकर्ता की एंडोमेट्रियल (जहां भ्रूण को चिपकना है) तैयारी
8. निषेचन की प्रक्रिया और भ्रूण विकास
9. प्राप्तकर्ता में भ्रूण स्थानांतरण
10. गर्भावस्था परीक्षण

1) प्राप्तकर्ता का मूल्यांकन

 दंपत्ति के संपूर्ण चिकित्सा और प्रजनन इतिहास का मूल्यांकन किया जाना चाहिए

 किसी भी तरह की असामान्यताओं को निर्धारित करने के लिए पैल्विक परीक्षण के साथ पूरी सामान्य शारीरिक जांचें की जानी चाहिए, जो गर्भावस्था के परिणाम को प्रभावित कर सकती हैं।

 एंडोक्रिनोलॉजिकल जांच जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकती है और गर्भावस्था के दौरान संभावित बिमारियों जैसे थायरॉयड फंक्शन परीक्षण, सीरम प्रोलैक्टिन, ब्लड ग्लुकोज स्तर आदि को देखना चाहिए ।

 एचआईवी, हेपेटाइटिस, सिफिलिस और अन्य प्रजनन अंग या मार्ग से जुड़े संक्रमण जैसे क्लैमाइडिया और टीबी के लिए प्रासंगिक सीरोलॉजिकल स्क्रीनिंग परीक्षण यदि आवश्यक हो तो किए जाने चाहिए।

 रक्त का प्रकार और आरएच प्रकार, हीमोग्लोबिन आदि से जुड़े प्रासंगिक लैबोरेटरी परीक्षण और ग्रीवा जांच के लिए पैप स्मीयर किया जाना चाहिए

• गर्भाशय गुहा का मूल्यांकन – किसी प्रकार की गर्भाशय या अंडाशय विकृति जैसे रसौली, मस्सा, हाइड्रोसालपिंक्स, ओवेरियन सिस्ट, यूटेराइन मेलफोरमेशंस की उपस्थिति का पता लगाने के लिए अच्छी टू डी अल्ट्रासोनाग्राफी की जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो थ्री डी अल्ट्रासोनाग्राफी द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए। किसी भी असामान्यता की आशंका होने के मामले में हिस्टेरोस्कोपी का सुझाव दिया जाता है।

 हिस्टोपैथोलॉजिकल परीक्षण के लिए एंडोमेट्रियल बायोप्सी। टीबी-पीसीआर और कल्चर किया जा सकता है यदि पूर्व में बार-बार आरोपण विफलता या लगातार पतली एंडोमेट्रियम या हिस्टेरोस्कोपी में कोई संदेह दिखा हो।

 यदि महिला की आयु 40 वर्ष से अधिक है, कार्डियक फंक्शन का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। गर्भावस्था के दौरान मधुमेह, उच्च रक्तचाप की आशंका पर विचार किया जाना चाहिए। महिला की अधिक आयु के साथ- साथ बीमारी के गर्भावस्था पर पड़ने वाले प्रभाव पर दम्पती की काउन्सलिंग की जानी चाहिए।

 रूबेला और वैरिसेला जांच की जा सकती है और गैर-प्रतिरक्षा (नॉन इम्युन) प्राप्तकर्ताओं को प्रतिरक्षित (इम्युनाईज्ड) किया जा सकता है।

• आनुवंशिक परीक्षण – इतिहास, परिवेश और वर्तमान सिफारिशों के आधार पर

 विशेष परीक्षण जैसे कि करियोटाइपिंग और ऑटोइम्यून स्क्रीनिंग यदि आवश्यक हो तो । कार्डिएक मूल्यांकन यदि प्राप्तकर्ता को टर्नर सिंड्रोम है।

 दम्पती का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन/परख

 

2) दाता का मूल्यांकन और चयन

 बेनामी डोनर का चयन किया जाता है और नवीन दिशा-निर्देशों के अनुसार युग्मक दाताओं की स्क्रीनिंग की जानी चाहिए। प्रासंगिक जांच भी की जानी चाहिए।

 अंडादाता कानूनी रूप से वयस्क होनी चाहिए । विशेषतः 21 से 34 वर्ष की आयु के बीच और उनका न्यूनतम 3 साल का एक जीवित बच्चा होना चाहिए । यदि दाता की आयु 34 वर्ष से अधिक है तो प्राप्तकर्ता के सामने इस बात को स्पष्ट किया जाना चाहिए व गर्भावस्था पर दाता की आयु के प्रभाव के बारे में बताया जाना चाहिए।

 विस्तृत व्यक्तिगत और चिकित्सकीय इतिहास का मूल्यांकन जैसे यौन इतिहास, मादक द्रव्यों के सेवन, पारिवारिक बीमारी का इतिहास और मनोवैज्ञानिक इतिहास।

 दाताओं की यौन संचारित रोगों या संचारी रोगों के लिए जांच की जानी चाहिए जो कि प्राप्तकर्ता के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं।

 आनुवंशिक परीक्षण यदि आवश्यक हो

 यदि दाता फिट है और सभी प्रासंगिक अनुकूलता परीक्षण किए जा चुके हैं तो दाता को कुछ फेनोटाइपिक और रक्त विशेषताओं आदि के आधार पर प्राप्तकर्ता को सौंपा जाता है।

 

3) प्राप्तकर्ता दम्पती और डोनर की काउन्सलिंग

 प्राप्तकर्ता जोड़े को प्रक्रिया के लाभों और जोखिमों, प्रक्रिया से संबंधित कानूनों के बारे में परामर्श दिया जाना चाहिए। दम्पती को आश्वस्त किया जाना चाहिए कि राष्ट्रीय एआरटी बिल के अनुसार युग्मक दान की प्रक्रिया गोपनीय रखी जाएगी।

 दाताओं को प्रक्रिया से संबंधित कानूनों, प्रक्रिया के विवरण, नियमित यात्राओं की आवश्यकता और ओवरी स्टीमुलेशन के कारण जटिलताओं बारे में परामर्श दिया जाना चाहिए।

 

4) प्राप्तकर्ता और दाता की सहमति

हाल ही में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार प्राप्तकर्ता दम्पती और युग्मक दाताओं से सहमति ली जानी चाहिए।

 

5) डोनर का ओवेरियन स्टीमुलेशन

अंडादाता मानक प्रोटोकॉल के अनुसार ओवेरियन स्टीमुलेशन के लिए हार्मोनल उपचार से गुजरता है।

6) दानकर्ता का उसाइट रिट्रीवल (अण्डे निकालना)

एक बार ओवरी में फोलिकल्स उचित आकार में पहुंच जाते हैं तब ट्रिगर दवा अंतिम उसाइट परिपक्वता और ओव्युलेशन के लिए दी जाती है । ट्रिगर के बाद उसाइट रिट्रीवल होने पर अण्डे प्राप्त करने के लिए उचित समय पर ऐनेस्थिसिया दिया जाता है।

 

7) प्राप्तकर्ता में एण्डोमेट्रियल तैयारी

इस प्रक्रिया में हार्मोनल उपचार शामिल है जो भ्रूण आरोपण के लिए प्राप्तकर्ता के एंडोमेट्रियम (आंतरिक गर्भाशय गुहा जहां भ्रूण प्रत्यारोपित होता है) को तैयार करता है।

 

8) इन विट्रो फर्टिलाईजेशन और भ्रूण विकास

 

वीर्य का सेम्पल शुक्राणु दाता से प्राप्त किया जाता है। ताजा भ्रूण के निर्माण के लिए सबसे अच्छे शुक्राणु का चयन सेम्पल में से किया जाता है और इक्सी (इंट्रा साइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन) तकनीक के माध्यम से उसाइट ( अंडा दाता से प्राप्त अण्डा ) में इंजेक्ट किया जाता है। अधिक इम्प्लांटेशन सफलता दर प्राप्त करने के लिए ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक भ्रूण को विकसित किया जाता है।

 

9) प्राप्तकर्ता में भ्रूण स्थानान्तरण

 

इसके लिए या तो अंडादाता और शुक्राणु दाता से बनाए गये ताजा भ्रूणों या दाताओं से लेकर पूर्व में क्रायोप्रिजर्व किये गये भ्रूण या दम्पती जो निःसंतानता के उपचार से गुजर रहे हैं अगर वे मापदण्डों को पूरा कर रहे तो उनके भ्रूणों का उपयोग किया जा सकता है |

भ्रूण को एक कैथेटर में रखकर अल्ट्रासाउंड मार्गदर्शन में प्राप्तकर्ता के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है।

 

 


10) गर्भावस्था परीक्षण

गर्भावस्था का परिणाम सकारात्मक या नकारात्मक है यह निर्धारित करने के लिए रक्त में एचसीजी के स्तर को स्थानांतरण के कुछ दिनों बाद रक्त गर्भावस्था परीक्षण (बीटाएचसीजी) के माध्यम से मापा जाता है।

एचसीजी के स्तर के आधार पर इस प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है और फिर मरीज को अल्ट्रासाउंड द्वारा पांचवे या छठे सप्ताह में गर्भावस्था के मूल्यांकन और तारीख के निर्धारण के लिए बुलाया जाता है।

प्राप्तकर्ता को गर्भावस्था के 12 वें सप्ताह तक अपने फटिलिटी विशेषज्ञ द्वारा हार्मोनल सम्लीमेंट जारी रखने का निर्देश दिया जा सकता है।

 

प्रक्रिया की सफलता से जुड़े महत्वपूर्ण तत्व

 
प्राप्ततकर्ता से जुड़े फेक्टर्स

a) 40 साल से कम उम्र की महिलाओं में प्रत्यारोपण और गर्भधारण की दर अधिक थी।

b) एण्डोमेट्रियल की मोटाई – एंडोमेट्रियल मोटाई 7 मिमी से अधिक होना आरोपण और सफलता दर को बढ़ा सकता है।

c) भ्रूण की गुणवत्ता – उच्च श्रेणी के भ्रूण गर्भावस्था की संभावना दर को बढ़ाते हैं।

d) अधिक बीएमआई – उच्च बीएमआई का नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।

e) गर्भाशय में विकार – गर्भाशय में किसी प्रकार की विकृति जैसे रसौली, मस्सा आदि प्रत्यारोपण को नकारात्मक रूप से बाधित कर सकते हैं।

f) भ्रूण ट्रांसफर में परेशानी – इससे भ्रूण प्रत्यारोपण विफल हो सकता है।

 
डोनर से जुड़े फैक्टर्स

a) 21-34 वर्ष आयु वर्ग में सफलता दर उच्च है।

b) परिपक्व प्राप्त अण्डों (एम 2) की संख्या – अधिक संख्या में परिपक्व अण्डों से जन्म दर अधिक होती है।

 

भ्रूण डोनेशन के प्रभाव

 
प्राप्तकर्ता पर –

1. उच्च रक्तचाप से ग्रस्त विकारों और सीजेरियन सेक्शन दरों में वृद्धि को छोड़कर अच्छे प्रसूति संबंधी परिणाम।

2. जन्मजात विकृतियों का कोई अतिरिक्त जोखिम नहीं।

 
डोनर पर –

1. अंडे के दान के अल्पावधि जोखिमों में ओवेरियन हाइपरस्टीमुलेशन सिंड्रोम, इंट्रा एब्डोमिनल ब्लीडिंग, संक्रमण, आवेरियन मरोड़ शामिल हैं। गंभीर जटिलताएं की संभावना बहुत कम है।

2. मनोवैज्ञानिक समस्या और दीर्घकालिक जोखिम बहुत कम है।


Comments

Articles

2022

Guide to infertility treatments Egg Donor

5 Tips on how to choose an Egg Donor in IVF!

IVF Specialist

Choosing the Right Egg Donor for Donor Egg IVF process- Choosing the right ...

Tools to help you plan better

Get quick understanding of your fertility cycle and accordingly make a schedule to track it

© 2024 Indira IVF Hospital Private Limited. All Rights Reserved.