इन्दिरा आईवीएफ की आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ. शिल्पा गुलाटी बताती हैं कि इस बीमारी से प्रभावित महिलाओं के दिमाग में आमतौर पर कई सवाल होते हैं जैसे कि पीसीओडी की समस्या में जल्दी गर्भवती कैसे हो सकते हैं ? पीसीओडी में आईवीएफ प्रोटोकॉल क्या है? पीसीओडी और आईवीएफ विफलता कैसे संबंधित है? क्या पीसीओडी के लिए कोई फर्टिलिटी विशेषज्ञ है? क्या पीसीओडी में आईवीएफ अंडे की गुणवत्ता को प्रभावित करता है? पीसीओडी उपचार में पहली बार में आईवीएफ सफलता की दर क्या है ?
पीसीओएस (पॉलिसिस्टिक ओवरी सिन्ड्रोम) एक हॉर्मोनल विकार है जिससे महिला के अण्डाशय में पुरूष हार्मोन उत्पन्न होने लगते हैं। इससे अण्डाशय में सिस्ट बन जाते हैं। पहले ये समस्या अधिक उम्र की महिलाओं में सामने आती थी, आजकल कम उम्र की महिलाओं और लड़कियों में भी जांचों में सामने आ रही है। यह गंभीर समस्या नहीं है लेकिन इससे गर्भधारण में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
पीसीओडी वंशानुगत होने के साथ ही पारिस्थितिक कारकों का मिलाजुला रूप है इसके अलावा वजन की समस्या, कम शारीरिक गतिविधि के साथ परिवार में इस तरह का पूर्व इतिहास शामिल है। चिकित्सा निदान निम्नलिखित पर आधारित है – ओवुलेशन नहीं होना, उच्च एण्ड्रोजन स्तर, साथ ही आवेरियन सिस्ट । इन्दिरा आईवीएफ के निःसंतानता एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ.विनोद कुमार ने बताया कि अल्ट्रासाउंड द्वारा सिस्ट का पता लगाया जा सकता है। कुछ अन्य समस्याएं जो समान संकेत और लक्षण प्रस्तुत करती हैं, उनमें एड्रिनल हाइपरप्लासिया, थायरॉयड समस्या साथ ही प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर शामिल हैं।
पीसीओडी का कोई इलाज नहीं है। उपचार पद्धति में जीवनशैली में बदलाव जैसे वजन कम करना और व्यायाम को शामिल किया जा सकता है। मेटफोर्मिन और एंटी-एण्ड्रोजन भी मदद कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त स्थायी रूप से मुँहासे व अनचाहे बाल हटाने का उपचार लिया जा सकता है। इन्दिरा आईवीएफ की निःसंतानता एवं आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉ. स्वाति मोथे बताती हैं कि प्रजनन क्षमता बढ़ाने की योजना में वजन कम करना, क्लोमीफीन या मेटफॉर्मिन शामिल हैं। जिन महिलाओं को इनमें सफलता नहीं मिलती वे इन विट्रो फर्टिलाईजन (आईवीएफ) का सहारा लेती हैं।
पीसीओडी को 18 से 44 वर्ष की आयु की महिलाओं में आम हार्मोनल समस्या माना जाता है। 10 में से एक महिला को पीसीओडी के कारण निःसंतानता की समस्या हो सकती है। यदि कोई महिला अपर्याप्त ओवुलेशन के कारण निःसंतान है, तो पीसीओडी सबसे प्रमुख कारण हो सकता है। पीसीओडी के बारे में अधिक जानकारी देते हुए इन्दिरा आईवीएफ की इनफर्टिलिटी एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. स्वाति चैरसिया बताती हैं कि 1721 में इटली से प्राप्त पीसीओडी से जुड़ा विवरण अभी तक सबसे पुराना ज्ञात विवरण है।
शीर्ष आईवीएफ चिकित्सकों द्वारा बताए गये पीसीओडी के कुछ सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं –
1. माहवारी संबंधी समस्याएं – पीसीओडी मुख्य रूप से ऑलिगोमेनोरिया (एक वर्ष में नौ पीरियड्स से कम आना) या एमेनोरिया (लगातार 3 या अधिक महीनों तक पीरियड नहीं आना) का कारण बनता है। हालांकि मासिक धर्म से जुड़ी अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
2. निःसंतानता – यह आम तौर पर लगातार ओव्युलेशन नहीं होने या उसकी कमी के कारण होती है।
3. मस्कुलिनिंग हार्मोन का उच्च स्तर – हाइपरएंड्रोजेनिज्म के रूप में संदर्भित सबसे विशिष्ट संकेत मुँहासे के साथ-साथ चेहरे व शरीर पर अनचाहे बाल का विकास (पुरुष की तरह ठोड़ी या ऊपरी शरीर पर बालों का विकास) है, इसके अलावा हाइपरमेनोरिया (गंभीर और लम्बा मासिक धर्म) हो सकता है, एंड्रोजेनिक हेयर थिनिंग (बालों का पतला होना या बालों का झड़ना) या कुछ अन्य लक्षण ।
4. मेटाबोलिक विकार – यह इंसुलिन रेजिस्टेंस से जुड़े अन्य संकेतों के साथ वजन की मौलिक समस्याओं की ओर इशारा करता है। पीसीओडी के साथ महिलाओं में सीरम इंसुलिन, इंसुलिन प्रतिरोध और होमोसिस्टीन की मात्रा भी बढ़ जाती है। पीसीओएस के साथ महिलाओं को वजन की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
5. मासिक धर्म के दौरान भारी रक्तस्राव
6. शरीर पर अनचाहे बाल मुंहासे
7. बाल झड़ना
8. गर्दन के आसपास त्वचा का काला पड़ना या रंग गहरा होना
9. नींद संबंधी विकार
10. मिजाज में बदलाव
11. कम आत्मविश्वास
12. खाने और पींद के पैटर्न में गड़बड़ी
13. चिंता (Anxiety)
14. त्वचा पर टैग्स या मोटी त्वचा
15. इंसुलिन रेजिस्टेंस के लक्षण - अचानक थकान, भूख लगना या वजन तेजी से बढ़ना आदि।
पीओसीडी (पोलिसिस्टिक ओवरी डिजिज) के कई कारण हो सकते हैं लेकिन प्रमुख रूप से खराब जीवनशैली, शारीरिक गतिविधि, एक्सरसाइज या मेडिटेशन की कमी, बाहरी, जंकफुड और असमय खानपान आदि। स्मोकिंग और शराब का सेवन, बिजी जिन्दगी में काम का बहुत अधिक तनाव, रात को देर तक जागना आदि इन कारणों से महिलाओं में हॉर्मोन्स का लेवल असंतुलित हो जाता है। कुछ महिलाओं में वंशानुगत रूप से भी यह समस्या सामने आ सकती है जैसे माता, बहन या मौसी को पीसीओडी की हिस्ट्री रही हो। इन कारणों के साथ ही पीसीओडी के कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं।
1. अधिक वजन यानी मोटापा
2. अनियमित पीरियड्स
3. शरीर में इंसुलिन का अधिक स्तर
पीसीओडी के सभी मामलों में पॉलीसिस्टिक ओवरी ( पीसीओ ) हो जरूरी नहीं है और न ही सभी को ओवेरियन सिस्ट होते हैं हालांकि पेल्विक अल्ट्रासाउंड एक महत्वपूर्ण डायग्नोस्टिक उपकरण है, लेकिन एकमात्र नहीं है। चिकित्सा डायग्नोस्टिक में रॉटरडैम मानकों का उपयोग किया जाता है।
पीसीओडी का उपचार मुख्यरूप से जीवनशैली में बदलाव करके यानि साधारण जीवनशैली अपनाकर शुरू किया जा सकता है साथ ही एक्सरसाइज और शारीरिक गतिविधि को बढ़ाना चाहिए । पीसीओडी की स्थिति में विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सामान्यतया सर्जिकल उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजिज का इलाज लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया से किया जा सकता है जिसे ओवेरियन ड्रिलिंग भी कहा जाता है। लेप्रोस्कोपिक प्रोसिजर प्राकृतिक ओव्यूलेशन शुरू करने या फिर से शुरू करने के लिए किया जाता है।
इसके साथ ही निम्न उपचार अपनाए जा सकते हैं -
वैसे तो पीसीओडी का विशेष उपचार नहीं है लेकिन लक्षणों के आधार इसके निम्न उपचार किये जा सकते हैं।
1. डायबिटिज की दवा - मधुमेह (डायबिटिज) में दी जाने वाली मेडिसिन इसे बढ़ने से रोकने में मददगार साबित हो सकती हैं।
2. फर्टिलिटी संबंधी दवाएं - इनफर्टिलिटी के ट्रीटमेंट में क्लोमिड और इंजेक्शन में जैसे एफएसएच (फोलिकल स्टीमुलेटिंग हार्मोन) और एलएच (ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन) का उपयोग किया जाता है। कुछ महिलाओं के केसेज में डॉक्टर लेट्रोजोल का सजेशन देते हैं।
3. इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट - गर्भधारण में कठिनाई होने पर आईयूआई , आईवीएफ जैसी आधुनिक उपचार तकनीकों से लाभ हो सकता है।
कई मामलों में प्राथमिक उपचार या साधारण जीवनशैली में बदलाव करके इससे छुटकारा पाया जा सकता है। यह जरूरी है कि अपने फर्टिलिटी एक्सपर्ट से समस्या साझा करें ताकि समस्या को ध्यान में रखकर उपचार प्रोटोकॉल बनाया जा सके।
जब पीसीओडी को मोटापे या अधिक वजन से जोड़ा जाता है, तो वजन कम करने को प्रभावी प्राकृतिक ओव्यूलेशन /मासिक धर्म के नियमित करने की कुशल विधि के रूप में माना जाता है, लेकिन ज्यादातर महिलाओं को लगता है वजन कम करना और ओव्युलेशन को सामान्य करना काफी चुनौतीपूर्ण है। 2013 में हुए एक क्लीनिकल मूल्यांकन के अनुसार शरीर के वजन के साथ-साथ शरीर की संरचना,, नियमित मासिक धर्म, ओव्यूलेशन, हाइपरपरथायरॉइडिज्म, इंसुलिन रेजिस्टेंस, लिपिड, साथ ही वजन कम करने के लिए क्वालिटी लाइफ आवश्यक है। इन्दिरा आईवीएफ के फर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉ. मुकेश बताते हैं कि कम जीआई आहार योजना, जिसमें समग्र कार्ब्स का एक बड़ा हिस्सा ताजे फल, सब्जियों, साथ ही साबूत अनाजों से प्राप्त किया जाता है, यह माहवारी की नियमितता के लिए एक मैक्रोन्यूट्रिएंट-मैच्योर स्वास्थ्यवर्धक आहार की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है।
विटामिन डी की कमी मेटाबोलिक डिसओर्डर की वृद्धि और विकास में कुछ भूमिका निभा सकती है। फिर भी 2015 के एक मूल्यांकन में इसका कोई प्रमाण नहीं मिला है। इन्दिरा आईवीएफ की वरिष्ठ इनफर्टिलिटी एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. तरूणा झम्ब बताती हैं कि 2012 में विश्लेषण में पाया गया कि पीसीओडी वाली महिलाओं में मोटाबोलिक अपर्याप्तताओं को ठीक करने के लिए पोषण संबंधी सप्लीमेंट का उपयोग करना लाभदायक है।
पीसीओडी के लिए दवाएं ओरल गर्भ निरोधकों के साथ-साथ मेटफॉर्मिन के रूप में भी मिलती हैं। ओरल गर्भ निरोधकों से ग्लोब्युलिन जनरेशन को सीमित करने वाले सेक्स हार्मोन में सुधार होता है, जो टेस्टोस्टेरोन के बंधन को कम करता है व उच्च टेस्टोस्टेरोन द्वारा प्रेरित हिर्सुटिज्म (अनचाहे बालों) को कम करता है और नियमित मासिक धर्म को भी नियंत्रित करता है। मेटफोर्मिन एक दवा है जो टाइप 2 मधुमेह में इंसुलिन के रेजिस्टेंस को कम करने के लिए व्यापक रूप से उपयोग की जाती है। पीसीओडी में पाए जाने वाले इंसुलिन के स्तर को ठीक करने के लिए इसका इस्तेमाल (यूनाइटेड किंगडम, यूएस, एयू के साथ-साथ ईयू) में किया जाता है। कई अवसरों पर मेटफोर्मिन डिम्बग्रंथि कार्यक्षमता को भी सुविधाजनक बनाता है और फिर नियमित ओव्यूलेशन वापस आता है। स्पिरोनोलैक्टोन का उपयोग उनके एंटीड्रोजेनिक परिणामों के लिए किया जा सकता है, साथ ही त्वचा के लिए एफ्लॉर्निथिन क्रीम का उपयोग चेहरे के अनचाहे बालों को कम करने के लिए किया जा सकता है। दवा श्रेणी में एक आधुनिक इंसुलिन रेजिस्टेंस, थियाजोलिडेनिओनेस (ग्लिटाजोन) ने मेटफॉर्मिन के बराबर प्रभाव प्रदर्शित किया है। हालांकि मेटफॉर्मिन एक अधिक लाभकारी प्रभाव प्रदान करता है। द यूकेज एनआईएच और क्लिनिकल एक्सीलेंस ने 2004 में सुझाव दिया कि पच्चीस से ऊपर के बॉडी मास इंडेक्स के साथ पीसीओडी वाली महिलाओं को जिन्हें अन्य उपचारों में सफलता नहीं मिली उन्हें मेटफोर्मिन प्रदान किया जाता है। इस बात पर कुछ असहमति हो सकती है कि इसका उपयोग एक आवश्यक फस्र्ट-लाइन थेरेपी की तरह किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मेटफॉर्मिन कई अनचाहे प्रभावों से जुड़ा हुआ है जैसे कि पेट दर्द, मेटालिक फ्लेवर इन ओरल केविटी, उल्टी और दस्त। इन्दिरा आईवीएफ की निःसंतानता एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. आकांक्षा जांगिड बताती हैं कि मेटाबोलिक डिसआर्डर के उपचार में स्टैटिन के उपयोग से अस्पष्टता की स्थिति रहती है।
पीसीओडी के साथ गर्भवती होना कठिन हो सकता है क्योंकि यह असामान्य ओव्यूलेशन का कारण होता है । यदि आप संतान पैदा करने की कोशिश करती हैं तो प्रजनन क्षमता को बढ़ावा देने वाली दवाएं ओवुलेशन इंडोस्टर क्लोमीफीन या लेट्रोजोल भी इसमें शामिल हो सकती हैं। जब भी मेटफार्मिन को क्लोमीफीन के सहयोग से लिया जाता है प्रजनन क्षमता बढ़ सकती है। मेटफोर्मिन को गर्भावस्था की अवधि (संयुक्त राज्य अमेरिका में गर्भावस्था वर्ग बी) में उपयोग करने के लिए व्यापक रूप से सुरक्षित माना जाता है। इन्दिरा आईवीफ की निःसंतानता एवं आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ.. शिल्पा गुलाटी का कहना है कि 2014 में एक मूल्यांकन में दावा किया गया था कि मेटफॉर्मिन के प्रयोग से ठीक होने वाली महिलाओं में पहली तिमाही में जन्मजात विकलांगता का खतरा नहीं होता है।
पीसीओडी से प्रभावित हर महिला को गर्भवती होने में समस्या नहीं होती है। महिलाओं में ओव्यूलेशन नहीं होना या अनियमित ओव्यूलेशन एक स्वीकृत कारण है। अन्य कारणों में गोनैडोट्रोपिन डिग्री में परिवर्तन, हाइपरएंड्रोजेनिमिया के साथ-साथ हाइपरिन्सुलिनमिया भी शामिल है। पीसीओडी से प्रभावित और बिना पीसीओडी महिलाएं जो ओव्युलेशन कर रही हैं उनमें कुछ अन्य कारणों से निःसंतानता हो सकती है जैसे यौन संचारित रोगों से उत्पन्न ट्यूबल ब्लॉकेज। पीसीओडी वाली अधिक वजन वाली महिलाएं आहार में बदलाव सहित वजन में कमी, मुख्य रूप से कार्ब्स की खपत को कम कर नियमित ओव्यूलेशन की बहाली कर सकती हैं।
वे महिलाएं जिनका वजन कम है या वजन कम किया है लेकिन अभी तक ओव्युलेशन नहीं कर पा रही हैं उस स्थिति में दवाओं के रूप में लेट्रोजोल साथ ही क्लोमीफीन साइट्रेट ओव्युलेशन को प्रोत्साहित करने के लिए प्राथमिक उपचार विकल्प हैं। इससे पहले एंटी डायबिटिज दवा मेटफोर्मिन को एनोव्यूलेशन के इलाज के लिए सजेस्ट जाता है, यह लेट्रोजोल या क्लोमीफीन की तुलना में कम कुशल है।
जो महिलाएं लेट्रोजोल या क्लोमीफीन और फिर जीवनशैली और आहार में परिवर्तन नहीं कर पा रही हैं उन्हें विकल्प में सहायक प्रजनन तकनीक में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन प्रक्रियाओं के रूप में फोलिकल-स्टीमुलेटिंग हार्मोन (एफएसएच) व ह्यूमन मीनोपोजल गोनेडोट्रोपिन इंजेक्शन सजेस्ट किये जा सकते हैं।
इन्दिरा आईवीएफ की निःसंतानता एवं आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. अर्चना बताती हैं कि सर्जिकल उपचार आमतौर पर नहीं किया जाता है। पॉलीसिस्टिक ओवरी का उपचार लेप्रोस्कोपिक प्रक्रिया से किया जाता है जिसे डिम्बग्रंथि ड्रिलिंग के रूप में जाना जाता है। यह अक्सर या तो प्राकृतिक ओव्यूलेशन या ओव्यूलेशन को फिर से शुरू करने के लिए किया जाता है इसके बाद क्लोमीफीन के साथ उपचार या एफएसएच का उपयोग नहीं किया जाएगा।
पीसीओडी एक सामान्य लेकिन बढ़ने पर जटिल हार्मोनल असंतुलन है, जिसमें महिला के अण्डाशय में सिस्ट बनने लगते हैं इसके साथ ही एण्ड्रोजन हार्मोन का लेवल बढ़ जाता है। हॉर्मोनल असंतुलन के कारण माहवारी अनियमित, चेहरे पर मुंहासे, अचानक वजन बढ़ना, प्रेगनेंसी होने में दिक्कत जैसे लक्षण सामने आ सकते हैं। सही समय पर डॉक्टर से कन्सल्ट, जांच और इलाज से इस पर नियन्त्रिण पाया जा सकता है और पूर्ण उपचार भी सम्भव है।
यह एक हार्मोनल असंतुलन की स्थिति है जिसमें अण्डाशय में छोटी-छोटी सिस्ट बन जाती है और माहवारी अनियमित होना, अचानक बढ़ना, मुंहासे होना आदि समस्याएं होती हैं।
पीसीओडी (पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिजीज) में अंडाशय में सिस्ट बन जाते हैं जबकि पीसीओएस एकाधिक और व्यापक हार्मोनल विकार है।
3.PCOS के चार प्रकार होते हैं: इंसुलिन रेसिस्टेंट, इंफ्लेमेटरी पीसीओएस, पोस्ट-पिल और एड्रेनल पीसीओएस।
लक्षणों के आधार पर पीसीओएस की पहचान की जा सकती है जैसे वजन बढ़ना, सूजन, हार्मोनल असंतुलन या दवाओं के प्रभाव से शरीर में बदलाव।
हाँ, हर प्रकार के पीसीओएस में लक्षणों के संकेत और प्रकृति अलग हो सकती है।
नहीं, इलाज लक्षणों कारणों और स्तर को देखकर निर्धारित किया जाता है।
इंसुलिन रेसिस्टेंट और इंफ्लेमेटरी पीसीओएस में गर्भधारण में अधिक कठिनाई हो सकती है।
हाँ, व्यायाम, संतुलित आहार, तनाव नियंत्रण और साधारण जीवनशैली से सभी प्रकार के पीसीओएस में सुधार संभव है।
इंसुलिन रेसिस्टेंट पीसीओएस सबसे कॉमन है।