अपनी बढ़ती उम्र को अपनी निःसंतानता का कारण न माने
एआरटी से करें कंसीव, दूर करें समस्याएं
भारत में निःसंतानता काॅमन समस्या बन गयी है, संतान की चाह रखने वाले करीब 15 फीसदी दम्पती इससे प्रभावित हैं। अरबन एरिया में ज्यादातर कपल्स काफी तनावपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, देर तक काम, करियर में ऊँचाइयां छूने या किसी अन्य कारण से फैमिली प्लानिंग में देरी करते हैं। बाहर का असमय खराब खानपान और स्मोकिंग उनके जीवन का हिस्सा बन गया है। यह सब निःसंतानता को निमन्त्रण दे रहा है जिससे इसका ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है। वैसे तो महिलाएं हर क्षेत्र में पुरूषों के समान है लेकिन फर्टिलिटी के मामले में उम्र उनके आड़े आती है ऐसे में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलाॅजी (एआरटी) ने उन्हें बढ़ती उम्र में भी माँ कहलाने का सुख दे दिया है, अब तो वे महिलाएं भी माँ बन सकती हैं जिनकी उम्र 45 वर्ष की है या जिनके मेनोपाॅज हो गया है।
अधिक उम्र में गर्भधारण में आनी वाली रूकावटें
प्राकृतिक रूप से गर्भधारण के सपने उम्र बढ़ने के साथ धुंधले होते जाते हैं क्योंकि कंसीव करने और स्वस्थ भ्रूण के लिए अण्डे की क्वालिटी अच्छी होना आवश्यक है और ज्यादा उम्र में महिलाओं में अण्डों की गणुवत्ता प्रभावित होती है। युवावस्था में महिलाओं में अंडे अच्छी संख्या व क्वालिटी के होते हैं जो हर माहवारी और उम्र के साथ-साथ घटते जाते हैं। इसके साथ महिलाओं में अधिक उम्र में यूटेराइन फाईब्रोइड्स, एण्डोमेट्रियोसिस से फर्टिलिटी प्रभावित होने की संभावना रहती है।
आईए नजर डालते हैं फर्टिलिटी से जुड़े आंकड़ों पर
आंकडों के अनुसार 20 साल की उम्र में एक मासिक साइकिल में चार में से एक महिला (100 में से 25) के गर्भधारण की संभावना रहती है वहीं 40 साल की आयु में यह मात्र 5 प्रतिशत और 45 तक पहुंचते- पहुंचते इसकी संभावना बिना किसी उपचार के न के बराबर रहती है। वहीं एक और शोध के अनुसार गर्भधारण के लिए 30-31 वर्ष आयु की तुलना में 34-35 साल में 14 प्रतिशत, 36-37 में 19 प्रतिशत, 38-39 में 30 प्रतिशत, 40- 41 साल में 53 प्रतिशत तक कम चांसेज तथा 45 साल में यह और भी घट जाते हैं।
गर्भधारण के बाद समस्याएं
रिसर्च के अनुसार महिलाओं में 35 वर्ष के बाद प्राकृतिक पे्रग्नेंसी और प्रसव में समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है जटिलता उतनी ही बढ़ जाती है। 40 बाद के बाद प्रेग्नेंसी में गर्भपात का खतरा 40 प्रतिशत तथा 45 की उम्र में इससे ज्यादा बढ़ जाता है साथ ही क्रोमोसोमल असामान्यताओं की संभावना दुगुनी हो जाती है। कुछ मामलों में अधिक उम्र में गर्भधारण करने से भू्रण के पूर्ण रूप से विकसित नहीं होने और कम वजन के होने की आशंका रहती है। अधिक आयु में गर्भकालीन मधुमेह, हारपरटेंशन और प्रसव काल लम्बा होने की संभावना रहती है।
इन विट्रो फर्टिलिाईजनेशन (आईवीएफ/टेस्ट ट्यूब बेबी)
यह तकनीक प्राकृतिक गर्भधारण की प्राथमिक प्रक्रिया से थोड़ी अलग हैं लेकिन जिन महिलाओं को गर्भधारण नहीं हो पा रहा है या उम्र अधिक हैं उनके लिए सफल और प्रभावी है। आईवीएफ में महिला के शरीर में सामान्य से अधिक अण्डे बनाने के लिए कुछ दवाइयां और इंजेक्शन दिये जाते हैं इस दौरान अण्डों के विकास पर नजर रखी जाती है जब अण्डे बन जाते हैं तब अंडाशय से निकाल कर अनुकूल वातावरण में लैब में रखे जाते हैं और बाद में शुक्राणुओं से लैब में मिलन कराया जाता है, जिससे निषेचन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है इसके बाद निषेचित अंडे (भू्रण) को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है।
रजोनिवृति के बाद कैसे बनें माँ
मेनोपाॅज के बाद महिला के प्राकृतिक रूप से प्रेग्नेंसी के चांसेज नहीं रहते हैं लेकिन आधुनिक तकनीकों के गुणवत्तापूर्ण उपचार से गर्भधारण किया जा सकता है, पिछले कुछ वर्षों में सफलता से प्रभावित होकर 45 से 50 वर्ष आयु वाली स्वस्थ महिलाएं संतान को जन्म देने के लिए तैयार हो रही हैं। ऐसी महिलाओं को डोनर एग के माध्यम से गर्भधारण करवाया जा सकता है । अंडे दान करने के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ व कम उम्र की महिलाओं का चयन किया जाता है इससे सफलता की संभावना बढ़ जाती हैं, डोनर एग से आईवीएफ द्वारा भू्रण बनने के बाद इसे महिला मे ट्रांसफर किया जाता है, फिर भ्रूण का विकास उसी महिला के शरीर में होता है। आईवीएफ तकनीक से अब ऐसी महिलाओं को भी संतान की आस बंध गयी है जो नसबंदी के बाद संतान चाहती हैं इसके लिए उन्हें आॅपरेशन की जरूरत भी नहीं है।
एग फ्रिजिंग
बढ़ती उम्र में स्वयं के अण्डों से मां बनने का तरीका है कम उम्र में एग फ्रीजिंग । अण्डे सुरखित करवाने के बाद महिला जब चाहे आईवीएफ तकनीक से मातृत्व प्राप्त कर सकती है। 45 वर्ष की उम्र महिला के लिए मातृत्व की राह आसान नहीं होती, ऐसे में एआरटी का सहयोग लेना बेहतर है। इसमें बनने वाले भ्रूण की क्वालिटी को पीजीएस तकनीक के जरिए पहले ही परखा जा सकता है, साथ ही ब्लास्टोसिस्ट स्टेज तक विकसित करने पर सफलता की संभावना अधिक रहती है।
प्रेग्नेंसी सेफ कैसेे रखी जाए
डाॅ. के सम्पर्क मंे रहकर नियमित दवाएं लें तथा जरूरी जांचे करवाएं
हाइड्रेड रहें तथा जरूरी विटामिन्स लें
स्मोकिंग, ड्रग्स तथा एल्कोहल से दूरी
वजन संतुलित रखें, डाइट चार्ट फोलो करंे
तनाव मुक्त सकारात्मक दृष्टिकोण
उपचार के प्रति मानसिकता में परिवर्तन
पिछले कुछ वर्षों में समाज में बड़े बदलाव आए हैं, भारतीय दम्पती पारम्परिक सोच को पीछे छोड कर संतान प्राप्ति के लिए आधुनिक तकनीकों का सहारा ले रहे हैं। एक समय जानकारी की कमी और गलत धारणाओं के कारण आईवीएफ तकनीक से संतान पैदा करने को अच्छा नहीं माना जाता था, कई कपल्स इसे छुपाकर रखते थे । आजकल 30 से 40 वर्ष उम्र के दम्पती बिना किसी डर के आईवीएफ से संतान प्राप्ति के लिए आगे आ रहे हैं। पहले लोगों को यह लगता था कि आईवीएफ से अधिक उम्र की महिलाएं प्रेग्नेंट नहीं हो सकती हैं लेकिन अवेयरनेस बढ़ने से पिछले डेढ़ दशक में 45 वर्ष तक की आयु के दम्पतियों में नयी तकनीकों से माता-पिता बनने की इच्छा में खासी बढ़ोतरी हो रही है।
वर्तमान में संतान प्राप्ति के लिए अपनायी जाने वाली यह सफल तकनीक है, दुनियाभर मंे 80 लाख से ज्यादा टेस्ट ट्यूब बेबीज का जन्म हो चुका है। लगातार बढ़ती सफलता दर के कारण भविष्य में वैश्विक स्तर पर आईवीएफ की मांग बढ़ेगी। महिलाओं और पुरुषों की विभिन्न समस्याओं में कारगर होने में इक्सी, ब्लास्टोसिस्ट, लेजर तकनीकों का योगदान है।
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