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Synopsis

Hysteroscopy in hindi: Hysteroscopy kya hai? हिस्टेरोस्कोपी गर्भ के अंदर की जांच के लिए उपयोग किया जाता है। जानिए hysteroscopy meaning in hindi और तकनीक के प्रकार Indira IVF के साथ।

महिलाओं की भागती दौड़ती जिन्दगी, तनाव और बदलती जीवनशैली के कारण कई तरह की बीमारियां बढ़ रही हैं। बाहर से फिट दिखने वाली महिलाओं को भीतर से स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं जिसकी उन्हें जानकारी भी नहीं होती है। अक्सर महिलाएं अपनी समस्याएं किसी को बताती नहीं है लेकिन समय पर जांच और इलाज के अभाव में समस्या अधिक बढ़ सकती है। कुछ वर्षों पहले महिलाओं की स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कम ही जांचे हुआ करती थी लेकिन विज्ञान में नये आविष्कारों के साथ महिलाओं की समस्याओं और इसके कारणों के बारे में पता करने के लिए नयी जांच मशीनें आ गयी हैं। सरल, सुलभ और रियायती दरों में उपलब्ध विभिन्न जांचों से न केवल समस्या के बारे में पता चल जाता है बल्कि जांच के साथ उपचार भी किया जा सकता है।

पिछले कुछ सालों में महिला स्वास्थ्य समस्याओं व निःसंतानता संबंधी समस्याओं की जांचों और इलाज के लिए हिस्ट्रोस्कोपी का उपयोग काफी बढ़ गया है।

हिस्टेरोस्कॉपी से अण्डाशय, गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब के फंक्शन की न केवल जांच की जा सकती है बल्कि सटिक उपचार भी संभव है। फिमेल इनफर्टिलिटी केसेस में आईवीएफ से पहले हिस्टेरोस्कॉपी से आईवीएफ की सफलता को बढ़ाया जा सकता है। कई महिलाओं को हिस्टेरोस्कॉपी के बाद आईवीएफ करवाने से संतान सुख प्राप्त हुआ है।

हिस्टेरोस्कॉपी के साथ इन दिनों लेप्रोस्कॉपी का चलन भी बढ़ा है लेकिन दोनों में थोड़ा अंतर है। लेप्रोस्कॉपी में डॉक्टर द्वारा पेट में दो या तीन छोटे चीरे लगाए जाते है तथा एक लेप्रोस्कोप के साथ सिर्जिकल इक्युपमेंट शरीर में प्रविष्ट किये जाते हैं। इसे लेप्रोस्कोप या दूरबीन की मदद से किया जाता है।

हिस्टेरोस्कॉपी अन्य जांचों की तुलना में अधिक भरोसेमंद जांच और उपचार तकनीक बनकर सामने आयी है। इस जांच तकनीक से आईवीएफ के असफल होने या रिकरंट मिसकैरेज के कारणों के बारे में पता चल जाता है।

हिस्ट्रोस्कोपी क्या है (hysteroscopy meaning in hindi)

Hysteroscopy kya hai? हिस्टेरोस्कॉपी एक तरह की जांच की इंडोस्कोपी प्रणाली है। ये गर्भाशय के विकारों की जानकारी में काम आती है। वर्तमान में आईवीएफ प्रोसिजर में हिस्टेरोस्कॉपी का प्रयोग अधिक होता है। वैसे तो इसके अन्य उपयोग भी हैं लेकिन प्रमुखता से इस तकनीक का प्रयोग गर्भाशय से संबंधित समस्या का बिना ऑपरेशन इलाज करके किया जा सकता है। इसका प्रयोग बच्चेदानी में बनने वाली झिल्ली को हटाने के लिए, यूट्रस फायब्राइड, फैलोपियन ट्यूब्स यानि नलियों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में किया जा सकता है कई मरीजों में इसके सफल परिणाम सामने आये हैं।

हिस्टेरोस्कॉपी यानी दूरबीन विधि से गर्भाशय की बीमारियों की बारीकी से जांच की जा सकती है। इसमें गर्भाशय की ट्यूब में किसी प्रकार की रुकावट, ट्यूमर आदि का आसानी से पता लगाया जा सकता है। यह पूरी प्रक्रिया दूरबीन के जरिए होती है।

इसमें एक लचीली, पतली और लाइट व कैमरे वाली टेलिस्कॉप ट्यूब योनी के माध्यम से अंदर डाली जाती है। हिस्टेरोस्कॉप को शरीर में प्रवेश करवाने के लिए किसी तरह की चीर-फाड नहीं की जाती है। कैमरे से जो तस्वीर दिखती है उसे बाहर मॉनिटर पर देखा जाता है । साफ छवि प्राप्त करने के लिए व गर्भाशय को चौड़ा करने के लिए विशेष प्रकार के फ्लूइड या गैस का उपयोग किया जाता है।

ओरिफाइस ट्रासल्युमिनल एंडस्कोपिक सर्जरी के रूप में हिस्टेरोस्कॉपी को जाना जाता है। ये बिना चीर-फाड़ के होने वाली उपचार प्रक्रिया है। इसमें पेशेंट को किसी तरह के दर्द से बचाने के लिए लोकल एनेस्थिसिया दिया जाता है। हिस्टेरोस्कॉपी में गर्भाशय की बीमारी के बारे में जानकारी मिलने के साथ अन्य बीमारियों के बारे में जानने के लिए बायोप्सी के लिए सेम्पल लेना भी संभव है।

हिस्टेरोस्कॉपी में आमतौर पर महिला को लोकल एनेस्थिसिया दिया जाता है इसलिए प्रक्रिया के एक घंटे बाद छुट्टी दी जा सकती है। ज्यादा जटिल प्रक्रिया होने पर महिला को प्रक्रिया के अगले दिन अस्पताल से छुट्टी दे दी जाती है। ये महिला के लिए दर्दरहित और सरल प्रक्रिया है।

हिस्ट्रोस्कोपी के विभिन्न प्रकार

प्रथम - डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कॉपी :

डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कॉपी की आवश्यकता कुछ विशेष परिस्थितियों में हो सकती है

  • औरत को बार-बार गर्भपात होता हो
     
  • यूट्रस में पॉलिप्स या फाइब्रॉइड जैसी समस्याओं के निदान के लिए
     
  • गर्भधारण नहीं होने यानि इनफर्टिलिटी के कारण जानने के लिए
     
  • पेट या पेट के निचले भाग में दर्द का कारण पता करने के लिए
     
  • मासिक धर्म में असामान्य ब्लिडिंग या अनियमित माहवारी के कारणों के बारे में पता करने के लिए

द्वितीय - ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कॉपी :

ऑपरेटिव हिस्टेरोस्कॉपी का उपयोग निम्न स्थितियों में किया जाना संभव है

  • इंफेक्शन या शल्य चिकित्सा बाद रह जाने वाले निशान हटाने के लिए
     
  • यूट्रस या फिर फाइब्रॉएड के आसामान्य विकास को हटाने के लिए
     
  • इन दिनों नसबंदी करने के लिए इसका उपयोग किया जाने लगा है
     
  • अन्य विकारों के बारे में जानने के लिए बायोप्सी करने के लिए छोटा टिश्यु निकाल कर लैब में भेजने के लिए

पिछले कुछ वर्षों से महिला के फर्टिलिटी पार्ट में कोई समस्या होने पर डॉक्टर द्वारा हिस्टेरोक्टॉमी सलाह दी जाती है। हिस्टरेक्टॉमी, औरत के गर्भाशय को हटाने के लिए की जाने वाली सर्जरी है। महिला का गर्भाशय नाशपाती के आकार का होता है जहां गर्भवती होने पर भ्रूण विकसित होता है। हिस्टेरोक्टॉमी के बाद महिला को कुछ विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं होती है।

विभिन्न प्रकार की हिस्टेरेक्टॉमी प्रक्रियाओं के प्रकार

पार्शियल हिस्टेरोक्टॉमी - इसमें सिर्फ गर्भाशय को निकाला जाता है
टोटल हिस्टरेक्टॉमी - एक प्रक्रिया जब गर्भाशय और गर्भाशय ग्रीवा को हटा दिया जाता है।

हिस्टेरोक्टॉमी के बाद महिला को दो -तीन दिन तक अस्पताल में रहना होता है और पूरी तरह से ठीक होने में कुछ दिनों का समय लगता है।

सवाल – जबाव (FAQs)

प्रश्न: हिस्टेरोस्कॉपी कैसे किया जाता है ?

उत्तर: हिस्टेरोस्कॉपी में दूरबीन के माध्यम से गर्भाशय की बीमारियों की पहचान की जा सकती है। इसमें गर्भाशय में किसी प्रकार की रुकावट, ट्यूमर आदि के में पता किया जाता है। इसमें कैमरे व लाइट वाली टेलिस्कॉप को शरीर के अंदर डाला जाता है और उससे प्राप्त होने वाली तस्वीरों को मॉनिटर पर देखा जाता है।

प्रश्न: हिस्टेरोस्कॉपी कब किया जाना चाहिए ?

उत्तर: बार-बार गर्भपात, आसामान्य माहवारी, पीरियड्स के बाद या मेनोपॉज के बाद भी रक्तस्त्राव होना, गर्भधारण में समस्या या फिर पेट के निचले हिस्से में दर्द होने पर ।

प्रश्न: हिस्टेरोस्कॉपी कौन करवा सकता है ?

उत्तर: जो महिला निःसंतानता से प्रभावित है या माहवारी से संबंधित समस्याओं से प्रभावित है। फाईब्रोइ्डस या पॉलिप्स से परेशान है वे महिला हिस्टेरोस्कॉपी करवा सकती है। इन समस्याओं के चिकित्सक की सलाह पर अन्य बीमारियों से प्रभावित महिलाएं भी हिस्टेरोस्कॉपी करवा सकती हैं।

प्रश्न: हिस्टेरोस्कॉपी से ठीक होने में कितना समय लगता है ?

उत्तर: हिस्टेरोस्कॉपी में मरीज के उपचार के बाद ठीक होने की संभावना अधिक होती है। वैसे मरीज उपचार के बाद उसी दिन घर जा सकती है लेकिन जटिल प्रक्रिया होने पर एक - दो दिन अस्पताल में रहना पड़ सकता है। ये दर्दरहित प्रक्रिया है।

प्रश्न: हिस्टेरोक्टॉमी के बाद क्या नहीं करना चाहिए ?

उत्तर: हिस्टेरोक्टॉमी के बाद कम से कम चार से 6 सप्ताह तक सेक्स नहीं करने का सुझाव दिया जाता है। डॉक्टर ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि इससे योनि का घाव ठीक होने या रक्तस्त्राव से बचा जा सकता है।

निष्कर्ष

आज के समय में हिस्टेरोस्कॉपी की सफलता को देखते हुए इसकी मांग काफी बढ़ रही है। महिलाओं की कई समस्याओं में यह तकनीक उपयोग में ली जा सकती है। इससे जांच व उपचार दोनों किये जा सकते हैं।

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