Azoospermia in Hindi: अशुक्राणुता पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी होने की समस्या है। जानिए एजुस्पर्मिया azoospermia meaning in hindi, कारण, लक्षण और उपचार Indira IVF के साथ।
माता-पिता बनने से महरूम रहना भला किस दम्पती को अच्छा लगता है। निःसंतानता का दर्द पति-पत्नी को अंदर ही अंदर खाए जाता है। वे अपनी समस्या किसी को बता भी नहीं पाते हैं और निःसंतानता को ईश्वरीय अभिशाप मान कर हार स्वीकार कर लेते हैं।
निःसंतानता को आज भी हमारे देश में ऐसा विषय माना जाता है जिस पर बात करने में न तो निःसंतान दम्पती सहज महसूस करते हैं और न ही उनके परिवारजन । भारत में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में निःसंतानता की समस्या बढ़ती जा रही है। कई दम्पतियों ने निःसंतानता की समस्या में आधुनिक आईवीएफ उपचार को अपनाया है और संतान सुख प्राप्त भी किया है लेकिन जानकारी व जागरूकता के अभाव में दम्पती नये इलाज को अपनाने से घबराते हैं।
निःसंतानता के लिए महिला एवं पुरूष दोनों जिम्मेदार हो सकते हैं। महिला में निःसंतानता के एकाधिक कारण हो सकते हैं वहीं पुरूषों में निःसंतानता के कारक स्पर्म यानि शुक्राणुओं से जुड़े हुए होते हैं। अशुक्राणुता के लक्षण में शुक्राणुओं की कमी के कारण गर्भधारण में परेशानी होती हैं वहीं शून्य शुक्राणुता (एजुस्पर्मिया) के कारण पुरूष निःसंतानता का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर पुरूष एजुस्पर्मिया (अषुक्राणुता) के बारे में जानते भी नहीं हैं, वे खुद को संतान प्राप्ति के लिए स्वस्थ मानते हैं और गर्भधारण नहीं होने पर परेशान रहने लगते हैं।
एजुस्पर्मिया पुरूषों में सामने आने वाली निःसंतानता की एक बड़ी समस्या है। एजुस्पर्मिया से प्रभावित होने पर पुरूष के वीर्य में शुक्राणु निल यानि जीरो होते हैं। अगर किसी आदमी को एजुस्पर्मिया है तो शुक्राणुओं के बनने में समस्या हो सकती है और अगर शुक्राणुओं का निर्माण हो रहा है तो बाहर आने में कठिनाई हो सकती है।
कौनसे टेस्ट होते हैं - गर्भधारण नहीं होने की स्थिति में डॉक्टर पुरूष के सीमन की जांच करते हैं जिसे वीर्य विश्लेषण कहा जाता है। जांच में वीर्य में शुक्राणुओं की कुल संख्या, जीवित शुक्राणुओं की संख्या, गतिषीलता, बनावट, मृत शुक्राणुओं की संख्या आदि चीजें देखी जाती हैं।
निल शुक्राण (एजुस्पर्मिया) के संभावित कारण - कैंसर का इलाज, वेरिकोसील, डिफेन्डेड इफेक्ट्स, किडनी फेलियर, जन्मजात नपुसंकता संबंधी विकार, सीकलसरएनिमिया, वास डिफरेंस का ना होना, डाईबिटिज मलेटस, ट्यूमर आदि है।
निल शुक्राणुओं के कुछ अन्य सम्भावित कारक- सीमेन का दूषित या खराब होना, अत्यधिक शारीरिक और मानसिक श्रम करना, शराब का अधिक सेवन करना, अत्यधिक धूम्रपान, बीडी सिगरेट या तम्बाकु का सेवन, गुप्तांग की दोषपूर्ण संरचना, शरीर में जिन्क तत्व की कमी , प्रोस्टेट ग्रंथि में विकार, खराब खानपान, प्रोस्टेट संबंधी बीमारी सहित कई यौन समस्याओं से जुड़े कारण हो सकते हैं। अंडकोष पर गर्मी के कारण सीमेन में स्पर्म का काउंट कम हो सकता है, अधिक तंग अण्डरगारमेंट्स पहनने ,गरम पानी से स्नान करने, बहुत देर तक गरम पानी के टब में बैठने और अधिक वजन या मोटापा होने से शुक्राणुओं में कमी आने की संभावना रहती है।
अजूस्पर्मिया के लक्षण में शुक्राणु की कमी या न होना शामिल है, जिससे वीर्य की मात्रा बहुत कम हो सकती है या पूरी तरह से अभाव हो सकती है। यदि आपको इन लक्षणों में से कुछ भी होता है, तो आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए जो आपकी समस्या का समाधान करने में मदद कर सकता है।
जो पुरूष निल स्पर्म की स्थिति में पिता बनना चाहते हैं उनके लिए विकल्प उपलब्ध हैं। कोई भी उपचार आरम्भ करने से पहले ये जानना जरूरी होता है कि अजूस्परमिया किस तरह का है यानि शुक्राणु बन रहे हैं या नहीं , अगर शुक्राणुओं का उत्पादन हो रहा है और बाहर नहीं आ रहे हैं तो इसका कारण क्या है ? टेस्टीज की बायोप्सी में ये पता चलता है कि उनमें स्पर्म बन रहे हैं या नहीं। अगर जांच में शुक्राणु नोर्मल तरीके से बन रहे हैं और ब्लॉकेज के कारण बाहर नहीं आ पा रहे हैं तो माइक्रो सर्जरी के माध्यम से ब्लोकेज का पता लगाया जा सकता है और इसे ठीक भी कर सकते हैं। कई पुरूषों को इससे लाभ हुआ है। यदि जांच में ये सामने आए कि एजुस्पर्मिया का कारण ब्लोकेज नहीं है तो इसका मतलब है कि स्पर्म बनने में ही कठिनाई हो रही है।
अगर शुक्राणु बन रहे हैं और ब्लोकेज के कारण बाहर नहीं आ रहे हैं तो इक्सी प्रक्रिया के तहत टेस्टीक्यूलर बायोप्सी करके स्पर्म निकाले जा सकते हैं। प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त स्पर्म में से श्रेष्ठ स्पर्म को महिला के अण्डे में इंजेक्ट करके निषेचन की प्रक्रिया की जा सकती है। इस प्रक्रिया से कई एजुस्पर्मिया वाले पुरूषों को पिता बनने का सुख मिल चुका है।
जिन पुरूषों के स्पर्म का निर्माण नहीं हो रहा है वे भी डोनर स्पर्म के माध्यम से पिता बन सकते हैं। इसमें आईवीएफ या इक्सी तकनीक से महिला के अण्डे को डोनर स्पर्म से फर्टिलाइज करवाया जाता है, इससे बनने वाले भ्रूण को महिला के यूट्रस में ट्रांसफर किया जाता है।
तकनीकी युग में पुरूष के कम या बहुत कम अच्छे शुक्राणुओं की स्थिति में भी पिता बना जा सकता है।
आज के समय में निःसंतानता के उपचार की कई तकनीकें विद्यमान हैं जिससे महिला व पुरूष की जटिल समस्याओं में माता-पिता बनने का सुख प्राप्त किया जा सकता है। निःसंतानता की स्थिति में कपल्स को कोई इलाज शुरू करवाने से पहले दोनों की जांचे करवानी चाहिए ताकि उपचार के चयन करने में आसान रहे व सफलता की संभावना अधिक हो।
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