अगर गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) की शुरुआत में बार-बार पेट में दर्द हो या हल्की ब्लीडिंग हो रही हो, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें। यह कभी-कभी एक्टोपिक प्रेगनेंसी का संकेत हो सकता है। एक्टोपिक प्रेगनेंसी वह कंडीशन है जब भ्रूण (एम्ब्रीओ) गर्भाशय (यूट्रस) के बाहर ठहर जाता है। समय पर पहचान और इलाज के अभाव में एक्टोपिक प्रेगनेंसी जानलेवा हो सकती है।
सामान्य गर्भावस्था में निषेचित अंडाणु (फ़र्टिलाइज़्ड एग) गर्भाशय की दीवार (एंडोमेट्रियम )में जाकर चिपक जाता है, जहां से उसका विकास शुरू होता है। लेकिन एक्टोपिक प्रेगनेंसी (Ectopic Pregnancy) में यह एम्ब्रीओ किसी गलत जगह जैसे फैलोपियन ट्यूब (fallopian tube) में फंस जाता है और वहीँ विकसित होना शुरू कर देता है। यह स्थिति दुर्लभ (रेयर) होते हुए भी खतरनाक है, क्योंकि भ्रूण वहां विकसित नहीं हो सकता और फैलोपियन ट्यूब फटने (tubal rupture) की संभावना बढ़ जाती है। WHO और ICMR दोनों का कहना है कि महिलाओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक अनडायग्नोज़्ड एक्टोपिक प्रेगनेंसी (undiagnosed ectopic pregnancy) भी है।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी (Ectopic Pregnancy) का मतलब है गर्भाशय के बाहर भ्रूण का ठहर जाना। सबसे आम जगह होती है फैलोपियन ट्यूब, इसलिए इसे अक्सर ट्यूबल प्रेगनेंसी (Tubal Pregnancy) भी कहा जाता है। कभी-कभी भ्रूण अंडाशय (ओवरी), सर्विक्स (cervix) या पेट के अंदरूनी हिस्से (एब्डोमिनल कैविटी) में भी ठहर सकता है, लेकिन ये मामले बहुत कम होते हैं।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी एक नॉन-वायबल प्रेगनेंसी (non-viable pregnancy) होती है यानी इस स्थिति में भ्रूण का सामान्य रूप से विकास नहीं हो सकता।
ICMR के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 100 गर्भवती महिलाओं में लगभग 1 या 2 केस एक्टोपिक प्रेगनेंसी के पाए जाते हैं। AIIMS की रिपोर्ट के अनुसार मातृ मृत्यु (मैटरनल मोर्टेलिटी) की कुल संख्या में एक्टोपिक प्रेगनेंसी से होने वाली मौतों की संख्या लगभग 3 से 4% है। ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में इस समस्या के प्रति जागरूकता की कमी है खासकर शुरुआती लक्षणों को न समझ पाना और समय पर अल्ट्रासाउंड न करवाना एक बड़ी चुनौती है।
सामान्य प्रेगनेंसी की तरह, एक्टोपिक प्रेगनेंसी में भी शुरुआती दिनों में टेस्ट पॉजिटिव आ सकता है। लेकिन 4 से 6 हफ्ते के भीतर ही जब अल्ट्रासाउंड (transvaginal ultrasound) किया जाता है और गर्भाशय में भ्रूण दिखाई नहीं देता, तब डॉक्टर को एक्टोपिक प्रेगनेंसी की आशंका होती है।
WHO के अनुसार, एक्टोपिक प्रेगनेंसी की सटीक जानकारी 5वें या 6ठे हफ्ते में मिलती है। इसीलिए अगर प्रेगनेंसी टेस्ट पॉजिटिव आए और पेट में दर्द या ब्लीडिंग हो, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाना जरूरी है।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी तब होती है जब निषेचित अंडाणु गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाता और रास्ते में ही रुक जाता है। इसके मुख्य कारण हैं:
एक्टोपिक प्रेगनेंसी के लक्षण शुरुआत में सामान्य प्रेगनेंसी जैसे हो सकते हैं, जैसे पीरियड मिस होना, हल्की ब्लीडिंग, या हल्का दर्द। लेकिन कुछ संकेत ऐसे हैं जिन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए:
डॉक्टरों के अनुसार, किसी भी गर्भवती महिला को यदि तेज पेट दर्द या असामान्य ब्लीडिंग हो, तो एक्टोपिक प्रेगनेंसी को पता करने के लिए तुरंत जाँच करनी चाहिए।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी के बारे में सही समय पर पता लगने से ही जान बचायी जा सकती है। पता करने के लिए निम्नलिखित जांचें की जाती हैं:
इलाज का तरीका भ्रूण के आकार, hCG स्तर और महिला की स्थिति पर निर्भर करता है।
अगर एक्टोपिक प्रेगनेंसी शुरुआती अवस्था में है और ट्यूब नहीं फटी है, तो डॉक्टर एक इंजेक्शन देते हैं। यह दवा भ्रूण के विकास को रोकती है ताकि शरीर उसे स्वाभाविक रूप से बाहर निकाल सके। ICMR के अनुसार, शुरुआती डायग्नोसिस पर 90% तक मरीज बिना सर्जरी ठीक हो जाते हैं।
अगर ट्यूब फट चुकी हो या ब्लीडिंग ज्यादा हो, तो सर्जरी करनी पड़ती है।
ऐसे किसी भी लक्षण पर देरी न करें क्योंकि यह इमरजेंसी हो सकती है।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी एक गंभीर लेकिन पहचानी जा सकने वाली स्थिति है। समय पर जांच, अल्ट्रासाउंड और सही इलाज से न सिर्फ महिला की जान बचाई जा सकती है, बल्कि भविष्य में माँ बनाने के लिए प्रजनन क्षमता (फर्टिलिटी) भी सुरक्षित रखी जा सकती है। ICMR और WHO दोनों संस्थाएँ यह सलाह देती हैं कि हर महिला को शुरुआती प्रेगनेंसी में अल्ट्रासाउंड करवाना जरूरी है ताकि एक्टोपिक केस समय रहते पकड़ में आ सके। सही जानकारी और सतर्कता ही सबसे बड़ा बचाव है।
आमतौर पर 5 से 6 हफ्ते के अंदर अल्ट्रासाउंड से इसका पता लगाया जा सकता है।
नहीं, यह भ्रूण जीवित नहीं रह सकता क्योंकि वह गर्भाशय के बाहर विकसित नहीं हो सकता।
हाँ, अगर एक ट्यूब स्वस्थ है तो भविष्य में प्रेगनेंसी संभव है।
ट्यूब ब्लॉकेज, PID, स्मोकिंग, IVF ट्रीटमेंट्स और पिछली एक्टोपिक प्रेगनेंसी प्रमुख कारण हैं।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी का खतरा हर प्रेगनेंसी की तरह IVF में भी होता है लेकिन डॉक्टर की सलाह पर अल्ट्रासाउंड कराते रहने से इसे समय पर पहचाना जा सकता है।
एक्टोपिक प्रेगनेंसी के इलाज के बाद कितने समय बाद दोबारा कोशिश की जा सकती है?